यूरोप में राष्ट्रवाद कक्षा 10 SUBJECTIVE QUESTION ANSWER 2020
यूरोप में राष्ट्रवाद कक्षा 10 SUBJECTIVE दीर्घ उत्तरीय
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1. इटली के एकीकरण में मेजिनी, काबुर और गरीबाल्डी के योगदानों को बताएँ ?
उत्तर:- मेजिनी :- मेजिनी साहित्यकार, गणतांत्रिक विचारों का समर्थक और योग्य सेनापति था। 1820ई० में राष्ट्रवादियों ने एक गुप्त दल ‘काबनरी’ की स्थापना की थी जिसका उद्देश्य छापामार युद्ध द्वारा राजतंत्र को समाप्त कर गणराज्य की स्थापना करना था। कार्बोनरी के असफल होने पर मेजिनी ने अनुभव किया कि इटली का एकीकरण कार्बोनरी की योजना के अनुसार नहीं हो सकता है। 1831 में उसने ‘युवा इटली’ नामक संस्था की स्थापना की जिसने नवीन इटली के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। ‘युवा शक्ति’ में मेजिनी का अटूट विश्वास था । युवा इटली संस्था का मुख्य उद्देश्य था—इटली की एकता एवं स्वतंत्रता की प्राप्ति तथा स्वतंत्रता, समानता और जन-कल्याण के सिद्धांत पर आधारित राज्य की स्थापना करना । मेजिनी के दिमाग में संयुक्त इटली का स्वरूप जितना स्पष्ट और निश्चित था उतना किसी अन्य के दिमाग में नहीं था।
मेजिनी संपूर्ण इटली का एकीकरण कर उसे गणराज्य बनाना चाहता था जबकि सार्डिनिया-पिडर्मोट का शासक चार्ल्स एल्बर्ट उसके नेतृत्व में सभी प्रांतों का विलय करना चाहता था। इसके अलावे पोप भी इटली को धर्मराज्य बनाने का पक्षधर था। विचारों को टकराहट के कारण इटली के एकीकरण का मार्ग अवरुद्ध हो गया था। कालांतर में आस्ट्रिया ने इटली के कुछ भागों पर आक्रमण किया जिसमें सार्डिनिया का शासक चार्ल्स एल्बर्ट पराजित हुआ। आस्ट्रिया ने इटली में जनवादी आंदोलन को कुचल दिया, मेजिनी की पुन: हार हुई और वह इटली से पलायन कर गया।
काउंट काबूर – काबूर एक सफल कूटनीतिज्ञ एवं राष्ट्रवादी था । वास्तव में काबूर के बिना मेजिनी का आदर्शवाद और गैरीबाल्डी की वीरता निरर्थक होती । काबर ने इन दोनों के विचारों में सामंजस्य स्थापित किया ।
काबुर यह जानता था कि —
(i) इटली का एकीकरण सार्डिनिया-पिडमौंट के नेतृत्व में ही संभव हो सकता है।
(ii) एकीकरण के लिए आवश्यक है कि इटली के राज्यों को आस्ट्रिया से मुक्त कराया जाए।
(iii) आस्ट्रिया से मुक्ति बिना विदेशी सहायता के संभव नहीं थी।
अतः, आस्ट्रिया को पराजित करने के लिए कार ने फ्रांस से मित्रता कर ली।
1853-54 ई० के क्रीमिया युद्ध में फ्रांस को मदद किया जिसका प्रत्यक्ष लाभ यु के बाद पेरिस के शांति सम्मेलन में मिला । इस सम्मेलन में फ्रांस और आस्ट्रिया के साथ पिडमौंट को भी बुलाया गया। यह काबुर की सफल कूटनीति का परिणाम था। इस सम्मेलन में कार ने इटली में आस्ट्रिया के हस्तक्षेप को गैर कानूनी घोषित किया। काबूर ने इटली की समस्या को पूरे यूरोप की समस्या बना दिया ।
काबूर ने फांस के शासक नेपोलियन-।।। से एक संधि की जिसमें यह तय किया गया कि
(1) फ्रांस आस्ट्रिया के खिलाफ पिङमाउंट को सैन्य समर्थन देगा तथा इटली के प्रांत नीस और सेवाय फ्रांस को प्राप्त होगा तथा ।
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(ii) फ्रांस ने कार को यह भी आश्वासन दिलाया कि यदि उत्तर और मुख्य इटली के राज्यों में जनमत संग्रह के आधार पर पिडमोंट में मिलाया जाता है तो फ्रांस इसका विरोध नहीं करेगा।
काबूर के इस कार्य की बहुत आलोचना हुई, लेकिन यदि दो प्रांतों को खोकर भी उत्तरी और मध्य इटली का एकीकरण हो जाता तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। 1859-60 में आस्ट्रिया और पिडर्मोट में सीमा संबंधी विवाद के कारण युद्ध शुरू हो गया । इटली ने फ्रांसीसी सेना के समर्थन से आस्ट्रिया को पराजित किया । आस्ट्रिया के अधीन लोम्बार्ड पर पिडमट का अधिकार हो गया । नेपोलियन-।।। इटालियन राष्ट्रवाद से घबराने लगा, अत: वेनेशिया पर विजय प्राप्त करने के बाद। नेपोलियन ने अपनी सेना वापस बुला ली।
युद्ध से अलग होने के कारण नेपोलियन-III ने आस्ट्रिया और पिडमट के बीच मध्यस्थता कराई जो विलाका को संधि के नाम से जाना जाता है । इस संधि के अनुसार लोम्बार्डी पर पिडमट का तथा वेनेशिया पर आस्ट्रिया का अधिकार माना गया । लोम्बार्डी पर अधिकार हो जाने के बाद काबूर का उद्देश्य मध्य एवं उत्तरी इटली का एकीकरण करना था। मध्य एवं उत्तरी प्रांतों की जनता पिडमौंट के साथ थी, इसलिए काबूर ने इन प्रांतों में जनमत संग्रह कराकर उसे पिडमौंट के साथ मिला लिया। इस प्रकार 1800-61 लुक कावर ने सिर्फ रोम को छोडकर उत्तर तथा मध्य प्रांतों (पारमा, मोडेना, टस्कनी, पियाकेजा, बोलोग्ना आदि) का एकीकरण हो चुका था तथा इसका शासक विक्टर इमैनुएल को माना गया ।।
गैरीबाल्डी :- गैरीबाल्डी ने सशस्त्र क्रांति के द्वारा दक्षिणी इटली के प्रांतों का एकीकरण कर वहाँ गणतंत्र की स्थापना करने का प्रयास किया। गैरीबाल्डी ने सिसली और नेपल्स पर आक्रमण किया। इन प्रांतों को अधिकांश जनता बू राजवंश के निरंकुश शासन से तंग होकर गैरीबाल्डी का समर्थक बन गई थी । गैरीबाल्डी।ने यहाँ विक्टर इमैनुएल के प्रतिनिधि के रूप में सत्ता
सँभाली । गैरीबाल्डी के दक्षिण अभियान को काबूर ने।भी समर्थन किया। 1862 ई. में गैरीबाल्टी ने रोम पर आक्रमण की योजना बनाई। कार में गैरीबाल्डी के इस अभियान का विरोध करते हुए रोम की रक्षा के लिए पिडभौर की सेना भेज दी। अभियान के बीच में ही गैरीबाल्डी की कार से भेंट हो गई तथा रोम अभियान वहीं खत्म हो गया। दक्षिणी इटली के जीते गए क्षेत्रों को गैरीबाल्डी ने विक्टर इमैनुएल को सौंप दिया। इस प्रकार, शेष जर्मनी का एकीकरण 1871 में विक्टर इमैनुएल द्वितीय के नेतृत्व में पूरा हुआ।
2. जुलाई 1830 की क्रांति का विवरण दें।
उतर:- फ्रांस के शासक चार्ल्स-X एक निरंकुश एवं प्रतिक्रियावादी शासक था। इसके काल में इसका प्रधानमंत्री पोलिग्नेक ने लुई 18वें द्वारा स्थापित समान
नागरिक संहिता के स्थान पर शक्तिशाली अभिजात्य वर्ग की स्थापना की तथा इस वर्ग को विशेषाधिकार प्रदान किया। उसके इस कदम से उदारवादियों एवं प्रतिनिधि सदन ने पोलिग्नेक का विरोध किया । चाल्र्स-X ने 25 जुलाई, 1830 ई० को चार
अध्यादेशों द्वारा उदारवादियों को दबाने का प्रयास किया। इस अध्यादेश के खिलाफ पोरस में क्रांति की लहर दौड़ गई तथा फ्रांस में गृहयुद्ध आरम्भ हो गया। इसे ही जुलाई, 1830 की क्रांति कहते हैं। परिणामस्वरूप, चार्ल्स-X फ्रांस की गद्दी को
छोड़कर इंगलैण्ड पलायन कर गया तथा इसी के साथ फ्रांस में बुबाँ वंश के शासन का अंत हो गया।
जुलाई, 1830 की क्रांति के परिणामस्वरूप फ्रांस में बूर्वो वंश के स्थान पर आर्लेनस वंश गद्दी पर आया । आर्लेयेस वंश के शासक लई फिलिप ने उदारवादियों, पत्रकारों तथा पेरिस की जनता के समर्थन से सत्ता प्राप्त की थी, अत: उसकी नीतियों
उदारवादियों के समर्थन में संवैधानिक गणतंत्र की स्थापना करना थी ।
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3. जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:- जर्मनी के एकीकरण में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका बिस्मार्क की रही उसने सुधार एवं कूटनीति के अंतर्गत जर्मनी के क्षेत्रों का प्रशाकरण अथवा प्रशा का एकीकरण करने का प्रयास किया। वह प्रशा का चांसलर था। वह मुख्य रूप से युद्ध के माध्यम से एकीकरण में विश्वास रखता था। इसके लिए उसने
रक्त और लौह की नीति का पालन किया । इस नीति से तात्पर्य था कि सैन्य उपायों द्वारा ही जर्मनी का एकीकरण करना । उसने जर्मनी में अनिवार्य सैन्य सेवा लागू कर दी ।।
जर्मनी के एकीकरण के लिए बिस्मार्क के तीन उद्देश्य थे-
(i) पहला उद्देश्य प्रशा को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाकर उसके नेतृत्व में जर्मनी के एकीकरण को पूरा करना ।
(ii) दूसरा उद्देश्य आस्ट्रिया को परास्त कर उसे जर्मन परिसंघ के बाहर निकालना था।
(iii) तीसरा उद्देश्य जर्मनी को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाना था।
सर्वप्रथम उसने फ्रांस एवं आस्ट्रिया से संधि कर डेनमार्क पर अंकुश लगाया । बिस्मार्क ने आस्ट्रिया के साथ मिलकर 1864 में श्लेसविंग और हाल्सटाइन राज्यों के मुद्दे लेकर डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया। जीत के बाद श्लेसविंग प्रशा के तथा हाल्सटाइन आस्ट्रिया के अधीन हो गया । डेनमार्क को पराजित करने के बाद उसका मुख्य शत्रु आस्ट्रिया था। बिस्मार्क ने यहाँ भी कूटनीति के अंतर्गत फ्रांस से संधि कर 1866 में सेडोवा के युद्ध में आस्ट्रिया को पराजित किया और पोप के अधिकार वाले सारे क्षेत्र को जर्मनी में मिला लिया । अंतत:, 1870 में सेडान के युद्ध में फ्रांस को पराजित कर फ्रैंकफर्ट की संधि की गई और फ्रांस की अधीनता वाले
सारे राज्यों को जर्मनी में मिलाकर जर्मनी का एकीकरण पूरा हुआ ।
4 .यूनानी स्वतंत्रता आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर:- यूनान में राष्ट्रीयता का उदय यूनान का अपना गौरवमय अतीत रहा है जिसके कारण उसे पाश्चात्य राष्ट्रों का मुख्य स्रोत माना जाता था । यूनानी सभ्यता की साहित्यिक प्रगति, विचार, दर्शन, कला, चिकित्सा, विज्ञान आदि क्षेत्रों में उपलब्धियाँ पाश्चात्य देशों के लिए प्रेरणास्रोत थीं । पुनर्जागरण काल से ही पाश्चात्य देशों ने यूनान से प्रेरणा लेकर काफी विकास किया था, परन्तु इसके बावजूद यूनान अभी भी तुर्की साम्राज्य के अधीन था । फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित होकर यूनानियों।में राष्ट्रवाद की भावना का विकास हुआ। धर्म, जाति और संस्कृति के आधार पर यूनानियों की पहचान एक थी, फलत: यूनान में तुर्की शासन से अपने को अलग करने के लिए कई आंदोलन चलाये जाने लगे। इसके लिए वहाँ हितेरिया फिलाइक (Hetairia Philike) नामक संस्था की स्थापना ओडेसा नामक स्थान पर की गई। यूनान की स्वतंत्रता का सम्मान समस्त यूरोप के नागरिक करते थे। इंगलैण्ड का महान कवि लॉर्ड बायरन यूनानियों की स्वतंत्रता के लिए यूनान में ही शहीद हो गया। इस घटना से संपूर्ण यूरोप की सहानुभूति यूनान के प्रति बढ़ चुकी थी। रूस जैसा साम्राज्यवादी राष्ट्र भी यूनान की स्वतंत्रता को समर्थक था। रूस तथा यूनान के लोग ग्रीक अर्थोडॉक्स चर्च को मानने वाले थे।
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