3. लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )
1.राजनीतिक दलों के मुख्य कार्य बताएं।
उत्तर :- किसी भी लोकतंत्र में राजनीतिक दल अनिवार्य हैं। लोकतांत्रिक देशों में राजनीतिक दल जीवन के एक अंग बन चुके है। इसीलिए उन्हें लोकतंत्र का प्रणा’ कहा गया है। लोकतांत्रिक शासन-प्रणाली में राजनीतिक दलों के निम्नलिखित प्रमुख कार्य हैं
(i) नीतियाँ एवं कार्यक्रम तय करना – राजनीतिक दल जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए नीतियाँ एवं कार्यक्रम तैयार करते हैं। इन्हीं नीतियों और कार्यक्रम के आधार पर ये चुनाव लड़ते हैं। राजनीतिक दल भाषण, टेलीविजन, रेडियो समाचार-पत्र आदि के माध्यम से अपनी नीतियाँ एवं कार्यक्रम जनता के सामने रखते हैं और मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करते हैं। मतदाता भी उसी राजनीतिक दल को अपना समर्थन देते हैं जिसकी नीतियाँ एवं कार्यक्रम जनता के कल्याण के लिए एवं राष्ट्रीय हित को मजबूत करनेवाला होता है।
(ii) शासन का संचालन – राजनीतिक दल चुनावों में बहुमत प्राप्त करके सरकार का निर्माण करते हैं। जिस राजनीतिक दल को बहुमत प्राप्त नहीं होता है, उन्हें विपक्षी दल कहते हैं। जहाँ एक ओर सत्ता पक्ष शासन का संचालन करता है वहीं विपक्षी दल सरकार पर नियंत्रण रहता है और सरकार को गड़बड़ियाँ करने से रोकता है।
(iii) चुनावों का संचालन- जिस प्रकार लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में राजनीतिक दलों का होना आवश्यक है, उसी प्रकार दलीय व्यवस्था में चुनाव का होना भी आवश्यक है। राजनीतिक दल अपनी विचारधाराओं और सिद्धांतों के अनुसार कार्यक्रम एवं नीतियाँ तय करते हैं। यही कार्यक्रम एवं नीतियाँ चुनाव के दौरान जनता के पास रखते हैं जिसे चुनाव घोषणा-पत्र कहते हैं।
(iv) लोकमत का निर्माण – लोकतंत्र में जनता की सहमति या समर्थन से ही सत्ता प्राप्त होती है। इसके लिए शासन की नीतियों पर लोकमत प्राप्त करना है और इस तरह का लोकमत का निर्माण राजनीतिक दल के द्वारा ही हो सकता है।
(v) सरकार और जनता के बीच मध्यस्थता करना – राजनीतिक दल का एक प्रमुख कार्य है जनता और सरकार के बीच मध्यस्थता करना। राजनीतिक दल ही जनता की समस्याओं और आवश्यकताओं को सरकार के सामने रखते हैं और सरकार कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रमों को जनता तक पहुँचाती है।
2. राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों की मान्यता कौन प्रदान करता है और इसके मापदंड क्या है ?
उत्तर :- राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय दलों की मान्यता निर्वाचन आयोग द्वारा प्रदान किया जाता है। राष्ट्रीय दल कहलाने के लिए निम्नलिखित मापदंड हैं।
(i) लोकसभा या विधानसभा चुनाव में चार या अधिक राज्यों में कुल डाल गए वैध मतों का 6 प्रतिशत मत प्राप्त करना आवश्यक है।
(ii) किसी राज्य अथवा राज्यों से लोकसभा में चार सीटों पर विजयी हाना आवश्यक है। अथवा लोकसभा में कम-से-कम तीन राज्यों से 2 प्रतिशत सीटें प्राप्त करना आवश्यक है।
(iii) कम-से-कम चार राज्यों से राज्य पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त हो।
किसी भी दल को राज्य स्तरीय दल कहलाने के लिए निम्नलिखित मापदंड आवश्यक हैं।
(i) विधानसभा की कुल सीटों में 3 प्रतिशत मत प्राप्त करना।
(ii) लोकसभा चुनाव में न्यूनतम हर 25 सीट में 1 सीट पर जीत हासिल करना।
(iii) कुल वैध मतों की 6 प्रतिशत प्राप्त करना।
3. लोकतंत्र के लिए राजनीतिक दल क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :- राजनीतिक दल लोकतंत्र की आधारशिला है। ये उत्तरदायी शासन के नायक अंग है। राजनीतिक दलों के बिना लोकतंत्र की कल्पना नहीं हो सकती। राजनीतिक दलों को काम करने की स्वतंत्रता नहीं होती तथा जहाँ एक ही
दल होता है, वहाँ स्वतंत्रता का अभाव होता है। इसीलिए, राजनीतिक दलों नोकतंत्र का प्राण’ कहा जाता है। प्रतिनिधिक लोकतंत्र की सफलता राजनीतिक पर ही निर्भर होती है। राजनीतिक दल प्रतिनिधियों को निर्वाचन में भाग लेते फाइनर के अनुसार, “दलों के बिना मतदाता या तो नपुंसक हो जाएँगे या नाशकारी जो ऐसी असंभव नीतियों का अनुगमन करेंगे, जिससे राजनीतिक यंत्र वस्त हो जाएगा।” राजनीतिक दल मतदाताओं का मार्गदर्शन करते हैं। राजनीतिक न ही लोकतंत्र को व्यावहारिक रूप देते हैं। ब्राइस का कथन है, “दल अनिवार्य है। कोई भी बड़ा स्वतंत्र देश उनके बिना नहीं रह सकता है।” राजनीतिक दल लोकतंत्र में शिक्षा के साधन है। ये जनता को सार्वजनिक प्रश्नों एवं समस्याओं के प्रति जागरूक रहने की शिक्षा देते हैं। ये जनमत का निर्माण करते हैं। निर्वाचन के समय ये नागरिकों को राजनीतिक साहित्य प्रदान करते हैं। उनमें शासन के प्रति जागरूकता उत्पन्न करते हैं और उनके राजनीतिक कर्तव्यों का बोध कराते हैं। भारत में भी लोकतंत्र की स्थापना की गई है। अतः यहाँ राजनीतिक दलों की महत्ता बहुत अधिक है।
4. राजनीतिक दल किस प्रकार राष्ट्रीय विकास में योगदान करते हैं ?
उत्तर :- किसी भी देश का विकास वहाँ के राजनीतिक दलों की स्थिति पर निर्भर करता है। जिस देश में राजनीतिक दलों के विचार, सिद्धांत एवं दृष्टिकोण ज्यादा व्यापक होंगे उस देश का राष्ट्रीय विकास उतना ही ज्यादा होगा। इसलिए कहा जाता है कि किसी भी देश के राष्ट्रीय विकास में राजनीतिक दलों की मुख्य भूमिका होती है। दरअसल राष्ट्रीय विकास के लिए जनता को जागरूक, समाज एवं राज्य में एकता एवं राजनीतिक स्थायित्व का होना आवश्यक हैं। इन सभी कार्यों में राजनीतिक दल ही मुख्य भूमिका निभाते हैं। राष्ट्रीय विकास के लिए राज्य एवं समाज में एकता स्थापित होना आवश्यक है। इसके लिए राजनीतिक दल एक महत्त्वपूर्ण संस्था के रूप में काम करता है। राजनीतिक दलों में विभिन्न जातियों, धर्मों, वर्गों एवं लिंगों के सदस्य होते हैं। ये सभी अपने-अपने जाति, धर्म एवं लिंग का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। राजनीतिक दल ही किसी देश में राजनीतिक स्थायित्व ला सकते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि राजनातक दल सरकार के विरोध की जगह उसकी रचनात्मक आलोचना करें। राष्ट्रीय विकास के लिए यह भी आवश्यक है कि शासन के निर्णयों में सबकी सहमति और सभी लोगों की भागीदारी हो। इस प्रकार के काम को राजनीतिक दल हा करते हैं। राजनीतिक दल संकट के समय रचनात्मक कार्य भी करते हैं। जैसे प्राकृतिक आपदा के दौरान राहत का कार्य आदि। राष्ट्रीय विकास के लिए सरकार र विभिन्न प्रकार की नीतियाँ एवं कार्यक्रम तैयार किये जाते हैं। सत्ता पक्ष एवं पक्ष क सहयोग से विधानमंडल ऐसे नीतियों एवं कार्यक्रम पास कराने में सहयोग करत हैं। इन्हीं सब बातों के आधार पर हम समझ सकते हैं कि राजनीतिक दल राष्ट्राय विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अत: राष्ट्रीय विकास में राजनीतिक पल बहुत ही व्यापक रूप से योगदान करते हैं।
5. राजनीतिक दल के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ कौन कौन सी हैं ? समझावें।
उत्तर :- राजनैतिक दलों के सामने अनेक चुनौतियाँ हैं जैसे
(i) वंशवाद – इसमें प्रत्येक दल अपने सगे-संबंधी मित्रों एवं रिश्तेदारों को महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठा देते हैं।
(ii) अपराधियों का प्रभाव- इन दिनों सभी दलों में परोक्ष रूप से आपराधिक तत्वों का प्रभाव बढ़ा है। चुनाव जीतने के लिए भी इनका खूब इस्तेमाल किया जाता है।
(ii) आंतरिक लोकतंत्र की कमी- पार्टी के भीतर न समय पर चुनाव कराया जाता है और न ही दलों के भीतर लिए गए फैसलों की जानकारी कार्यकर्ताओं तक पहुँच पाती है।
(iv) नेतृत्व का संकट- पार्टी के भीतर योग्य नेतृत्व की कमी पाई जाती है। यवा एवं कर्मठ लोगों के हाथों में नेतृत्व आना चाहिए।
(v) अवसरवादी गठबंधन – विभिन्न पार्टियाँ जनता के विश्वास को धोखा देकर. अपने-अपने सिद्धांतों को त्याग करती सिर्फ सत्ता की प्राप्ति के लिए किसी पार्टी से भी हाथ मिलाने को तैयार हो जाते हैं।
6. विपक्षी दल के किन्हीं चार कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर :- विपक्षी दल के चार कार्य इस प्रकार हैं –
(i) दो चुनावों के बीच सत्तारूढ़ दल पर नियंत्रण रखना,
(ii) कानून-निर्माण में सदन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना,
(iii) जनता की शिकायतों को सरकार के समक्ष रखना और
(iv) सरकार के साथ सकारात्मक कदम उठाकर देश के विकास में सहायता करना तथा लोकतंत्र को सफल बनाना।
7. आप कैसे कह सकते हैं कि जनसंघर्ष से राजनीतिक चेतना आती है ?
उत्तर :-जनसंघर्ष के दौरान आम जनता विभिन्न समस्याओं के बारे में अवगत हो जाती है। इसी दौरान उनको अपने अधिकारों का भी ज्ञान होता है। जनसंघर्ष सीधे तौर पर नीति निर्माताओं को प्रभावित करता है। इस प्रकार कई बार जनसंघर्ष का तुरंत लाभ जनता को प्राप्त होता है। इस पूरी प्रक्रिया में आम जनता के भीतर राजनीतिक चेतना जागृत होती है।
8. निर्वाचन आयोग के प्रमुख कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर :- प्रजातंत्र जनता के प्रतिनिधियों द्वारा संचालित शासन व्यवस्था है। निर्वाचन की स्वतंत्रता और निष्पक्षता ही प्रजातंत्र को सुदृढ़ बनाती है। इसलिए; निर्वाचन की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए एक निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है। इसके निम्नलिखित कार्य हैं
(i) संसद, विधानमंडलों, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए मतदाता-सूची तैयार करना, निर्वाचन क्षेत्र का निर्धारण करना तथा चुनाव तथा उपचुनाव कराना।
(ii) निर्वाचन की तिथि एवं कार्यक्रम का निर्धारण करना।
(iii) मतदान की समस्त व्यवस्था का नियंत्रण, निर्देशन, पर्यवेक्षण एवं संचालन करना।
(iv) चुनाव में राजनीतिक दलों, प्रत्याशियों एवं मतदाताओं के लिए आचार-संहिता बनाना।
(v) चुनाव खर्च की सीमा निर्धारित करना।
(vi) राजनीतिक दलों की मान्यता प्रदान करना, उनके लिए चुनाव चिह्न निर्धारित करना।
(vii) निर्वाचन से संबंधित विवादों एवं राज्यपाल या राष्ट्रपति के द्वारा भेजे गए निर्वाचन संबंधी विवाद याचिकाओं का निपटारा करना।
9. जनसंघर्ष का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर :- जनता जब सरकार की कुछ निश्चित नीतियों अथवा निर्णयों के विरोधस्वरूप बड़े पैमाने पर अपनी मांगों को मनवाने के लिए संघर्ष पर उतारू हो जाती है अथवा संघर्ष करने लगती है तो उसे जनसंघर्ष अथवा जनआंदोलन कहा जाता है। इस प्रकार की स्थिति तब आती है जब जनता को यह आभास हो जाता है कि सरकार उनके हितों की अनदेखी कर रही है। इस प्रकार के जनसंघर्ष का उद्देश्य सत्तापक्ष से अपनी बातों को मनवाना है या अपने हितों की रक्षा करना है। सामाजिक आर राजनीतिक व्यवस्था में इस प्रकार की अनेक विकतियाँ उत्पन्न होती रहती है। इन विकृतियों को दूर करने के उद्देश्य से जो जनसंघर्ष अथवा आदालन होते हैं उसे संघर्ष का सकारात्मक पक्ष कहा जाता है। परंतु, वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध अपनी असंतुष्टि या असहमति को संघर्ष के माध्यम से व्यक्त करना जनसंघर्ष
का नकारात्मक पक्ष है।
10. विभिन्न जन-आंदोलनों में महिलाओं की क्या भूमिका थी ?
उत्तर :- स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गाँधी ने भारतीय नारी को जगने का आह्वान किया। गाँधीजी के नमक सत्याग्रह के जुलूस में औरतों ने भी हिस्सा लिया,नमक बनाया तथा शराब की दुकानों की पिकेटिंग की। बहत सारी माहलाएर भी गई। शहरों में ज्यादातर ऊँची जाति की महिलाएँ तथा गाँवों में संपन्न किसा के परिवार की महिलाओं ने आंदोलन में भाग लिया। घर में रहने वाली माह ने चरखा चलाये और सत कातकर स्वदेशी वस्त्र को प्रोत्साहन दिया। नमक सत्याना में सरोजनी नायड का नाम उल्लेखनीय है। गाँधीजी द्वारा चलाया गया दूसरा का जन-आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन था। इस आंदोलन में महिलाओं का भाग १ का विशेष महत्त्व है। महिलाओं ने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया तथा बहिष्कार आंदोलन को सफल बनाया। . इस प्रकार जन आंदोलन में महिलाओं की भमिका थी। चिपको आदालन र महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई। इन्होंने शराबखोरी की लत के विरुद्ध आवाज उठाकर चिपको आंदोलन का दायरा और विस्तृत कर दिया।
11. चिपको आन्दोलन क्या है? अगर आपके आसपास के किसी पेड़ को कोई काटता है तो आप क्या करेंगे ?
उत्तर :- चिपको आन्दोलन उत्तराखण्ड के कुछ लोगों द्वारा वन विभाग के अधिकारियों के विरुद्ध उठायी गयी आवाज है। वन विभाग के अधिकारियों ने स्थानीय लोगों को खेती के औजार निर्माण हेतु पेड़ काटने से मना कर दिया और व्यवसायियों को खेल-सामग्री निर्माण हेतु वन के भूखण्ड आवंटित कर दिया। स्थानीय लोगों ने इसका जोरदार विरोध किया यह विरोध एक बड़े संघर्ष में बदल गया तथा इसका विस्तार उत्तराखण्ड के अन्य क्षेत्रों में भी हो गया। जनता का विरोध रंग लाया और सरकार झुक गयी। 15 वर्षों के लिए हिमालयी क्षेत्र में पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी गई। _ सत्तर के दशक में यह आन्दोलन पेड़-पौधे कटाई के विरुद्ध एक प्रतीक बन गया। पेड़ काटने वाले को हमें सर्वप्रथम पेड़ के लाभ के बारे में विस्तार से बताएँगे। उन्हें इस बात से अवगत करायेंगे कि एक पेड अपने सम्पूर्ण जीवन में वातावरण को प्रभावित करती हैं। अगर हर व्यक्ति इसी प्रकार पेड़ काटते जाएँ तो पृथ्वी से हरियाली समाप्त हो जाएगी। पृथ्वी के वातावरण में असंतुलन पैदा हो जाएगा। घटते ऑक्सीजन एवं बढ़ते कार्बन-डाइऑक्साइड के प्रभाव में पृथ्वी का तापमान बढ़ जाएगा। जमीन बंजर हो जाएगी। वर्षा की संभावना क्षीण हो जाएगी। बर्फ पिघल जाएगी अगर वह व्यक्ति फिर भी पेड़ काटने पर आमदा है तो कानून की सहायता लेंगे क्योंकि अनाधिकार पेड़ काटना कानूनी अपराध है।
12. किस आधार पर आप कह सकते हैं कि बिहार से शुरू हुआ ‘छात्र आंदोलन’ का स्वरूप राष्ट्रीय हो गया ?
उत्तर :- बिहार का छात्र आंदोलन तत्कालीन सरकार के विरुद्ध विशुद्ध छात्रों का जनसंघर्ष था जो बाद में राजनीतिक हो गया। 1971 में काँग्रेस की सरकार इंदिरागाँधी के नेतृत्व में बनी। 1971 के आम चुनाव में काँग्रेस की मुख्य नारा था ‘गरीबी हटाओ’। लेकिन 1971 में सरकार बनने के बाद भारत में सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति काफी बदतर हो गई। अमेरिका तथा मित्र राष्ट्रों से सहायता मिलना बंद हो गया। बेरोजगारी एवं भ्रष्टाचार काफी बढ़ गया। इन सब कारणों से देश में असंतोष का माहौल था। जो छात्रों को आंदोलन छोड़ने पर मजबूर कर दिया। मार्च 1974 में बिहार के छात्रों ने सरकार के विरुद्ध आंदोलन छेड़ दिया। उन्होंने बिहार की काँग्रेस सरकार बर्खास्त करने की माँग कर दी। सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में बिहार के छात्रों ने अपने आंदोलन के लिए जयप्रकाश नारायण को नेता चुना, जिसे उन्होंने इस शर्त के साथ स्वीकार कर लिया कि वह आंदोलन अहिंसक होगा और इसका क्षेत्र न सिर्फ बिहार तक सीमित रहेगा बल्कि संपर्ण भारत में होगा। जयप्रकाश नारायण के निवेदन पर सभी तरह के लोग आंदोलन में कद पडे। उन्होंने फैसला किया कि आंदोलन को बिहार के बाहर देश के अन्य भाग में भी फैलाया जाय। जयप्रकाश नारायण ने 1975 नेतृत्व किया। यह संसद मार्च दिल्ली में अबतक की सबसे बड़ी रैली थी। इस आंदोलन से प्रेरित होकर देश के अन्य राज्यों में भी आंदोलन हुए। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने इंदिरा गाँधी के इस्तीफे के लिए प्रभाव डालना शुरू किया। दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल जन प्रदर्शन कर जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गाँधी से इस्तीफे की माँग करते हुए राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह की घोषणा की। उन्होंने अपने आह्वान में सेना व पुलिस तथा सरकारी कर्मचारी को भी सरकार का आदेश देश के अंतर्गत की घोषणा कर ल में डाल दिया। छात्र आंदोलन’ नहीं मानने के लिए निवेदन किया। इंदिरा गाँधी ने इस आंदोलन को देश के आंतरिक विद्रोह मानते हुए 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल की घोष दी। आंदोलन से जुड़े सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को जेल में डा. उपर्युक्त कथनों के आधार पर कह सकते हैं कि बिहार से शुरू हुआ ‘छात्र और का स्वरूप राष्ट्रीय हो गया।
13.“जनसंघर्ष से भी लोकतंत्र मजबूत होता है।” क्या आप इस से सहमत हैं? अपने पक्ष में उत्तर दें।
उत्तर :- लोकतांत्रिक व्यवस्था एक ऐसी आदर्श व्यवस्था है जिसके । समाज में रहने वाले विभिन्न व्यक्ति के पारस्परिक हितों में टकराव चलता लोकतंत्र जनसंघर्ष द्वारा ही मजबूत होता है। किसी भी लोकतंत्र में फैसले सहमति से लिए जाते हैं। यदि सरकार फैसले लेने में जनसाधारण के विचार अनदेखी करती है तो ऐसे फैसलों के खिलाफ जनसंघर्ष होता है और विकास में, वाली बाधाएँ दूर हो जाती हैं। जनसंघर्ष सरकार को तानाशाही से रोकता है। इन संघर्षों का समाधान जा व्यापक लामबंदी के जरिए करती है। कभी-कभी इस तरह के संघर्षों का समाधी संसद या न्यायपालिका द्वारा भी होता है। सरकार पर इन सबके कारण लगातार दबाव बना रहता है और उसे जनता के हितों का पूरा-पूरा ख्याल रखना पड़ता है। अतः हम कह सकते हैं कि जनसंघर्ष से भी लोकतंत्र मजबूत होता है।
14. ग्राम पंचायत के प्रमुख अंगों का वर्णन करें।
उत्तर :- ग्राम पंचायत के प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं
(i) ग्राम सभा- गाँव के सभी वयस्क नागरिक ग्राम सभा के सदस्य होते हैं।
(ii) मुखिया – ग्राम पंचायत के वयस्क नागरिकों द्वारा मुखिया का चुनाव होता है। मुखिया ग्राम सभा की बैठक की अध्यक्षता करता है।
(ii) ग्राम कचहरी- प्रत्येक ग्राम पंचायत क्षेत्र में न्यायिक कार्यों को सम्पन्न करने के लिए एक ग्राम कचहरी का गठन किया जाता है। जिसमें एक निर्वाचित सरपंच और निश्चित संख्या में पंच होते हैं।
(iv) ग्राम रक्षा दल- गाँव के 18 से 30 वर्ष की आयु वाले स्वस्थ युवक ग्राम रक्षादल के सदस्य होते हैं। इसका मुख्य काम गाँव की रक्षा करना है।
(v) ग्राम पंचायत का सचिव- ग्राम पंचायत का सचिव सरकारी कर्मचारी होता है। ग्राम पंचायत के सारे दस्तावेज इन्हीं के अधीन रहते हैं।
15. नगर निगम का संगठनात्मक स्वरूप बताएँ।
उत्तर :- तीन लाख और इससे अधिक की आबादी वाले शहरों में नगर निगम की स्थापना की जाती है। इसके निम्नलिखित अंग हैं.
(i) निगम परिषद- इसके लिए नगर को जनसंख्या के आधार पर कई वाडौं में बाँट दिया जाता है। यह संख्या 45 से 75 तक हो सकती है। इसके सदस्य 5 वर्षों के लिए जनता द्वारा निर्वाचित होते हैं। उस क्षेत्र के संसद सदस्य एवं विधायक इसके पदेन सदस्य होते हैं।
(ii) मेयर तथा उपमेयर- ये निगम परिषद् के सदस्यों द्वारा निर्वाचित होते है तथा बैठकों की अध्यक्षता करता है।
(iii) समिति- निगम के कार्य समितियों द्वारा संचालित होते हैं। स्थायी समिति के अलावा अलग-अलग कार्यों के लिए कुछ समितियों होती हैं।
(iv) नगर आयुक्त- यह पदाधिकारी सरकार के द्वारा नियुक्त एवं सरकार क प्रति उत्तरदायी होता है। यह नगर निगम का वास्तविक प्रशासक होता है।
16. निम्नलिखित वक्तव्यों को पढ़ें और अपने पक्ष में उत्तर दें।
(i) क्षेत्रीय भावना लोकतंत्र को मजबूत करती है।
(ii) दबाव समूह स्वार्थी तत्त्वों का समूह है। इसीलिए इसे समाप्त कर देना चाहिए।
(iii) जनसंघर्ष लोकतंत्र का विरोधी है।
(iv) भारत में लोकतंत्र के लिए हुए आंदोलनों में महिलाओं का भूमिका नगण्य है।
उत्तर :-
(i) क्षेत्रीय भावनाएँ सदैव नकारात्मक नहीं होती। ऐसे क्षेत्र जहाँ का विकास नहीं हो पाया है या जिनकी क्षेत्रीय पहचान नष्ट होती जा रही है, कई बार सरकार का ध्यान उन क्षेत्रों के विकास पर नहीं जाता तो इन सब मुद्दों पर क्षेत्रीय भावनाएँ उत्पन्न होती हैं तो यह सकारात्मक है और इससे लोकतंत्र मजबूत होता है।
(ii) किसी भी सरकार के लिए यह संभव नहीं है कि वह प्रत्येक समूह की और समान रूप से ध्यान देकर उसकी आकांक्षाओं की पूर्ति करे, इस प्रकार कई मह विकास के लिए सहायता नहीं प्राप्त कर पाते।
यदि इनके अधिकार के लिए दबाव समूह कार्य करते हैं तो उसे स्वार्थी नहीं कहा जा सकता। इसे समाप्त करने का अर्थ होगा लोकतंत्र के मुख्य उद्देश्यों में अवरोध उत्पन्न करना।
(iii) जनसंघर्ष लोकतंत्र विरोधी नहीं बल्कि जनता के अधिकारों के लिए उठाई गाई आवाज है। प्रत्येक लोकतंत्र अपने नागरिकों को इसे मौलिक अधिकारों के रूप में प्रदान करता है। जब जनता को यह लगता है कि सरकार उनके विचारों की अनदेखी करती है तभी यह संघर्ष उत्पन्न होता है।जनसंघर्ष सरकार को स्वेच्छाचारी बनने से रोकता है। आखिरकार यह जनता के द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार है। अतः जनसंघर्ष को लोकतंत्र विरोधी कहना सर्वथा अनुचित है।
(iv) भारतीय लोकतंत्र में हुए आंदोलनों में महिलाओं की भूमिका उल्लेखनीय है। हमारे सामने इसके अनेक उदाहरण मौजूद हैं, चिपको आंदोलन में महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इसके अलावा आंध्रप्रदेश के ताड़ी विरोधी आंदोलन में भी महिलाएँ अग्रणी हैं। सूचना का अधिकार आंदोलन के पीछे भी एक महिला ही थी और नर्मदा बचाओ आंदोलन का भी नेतृत्व मेघा पाटेकर नामक एक महिला के हाथ में है। _ आज महिलाओं ने पंचायतों में आधे से अधिक सीटों पर जीत दर्ज किया है और वे संसद में भी 33 प्रतिशत आरक्षण के लिए संघर्षरत हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत के लोकतंत्र के लिए हुए आन्दोलनों में महिलाओं की भूमिका नगण्य नहीं है।
17. नेपाल में सप्तदलीय गठबंधन की सरकार किस प्रकार बनी? वर्णन करें।
उत्तर :- नेपाल में सन् 1990 से संवैधानिक लोकतंत्र की व्यवस्था थी। वर्ष 2001 में राजा वीरेंद्र की हत्या कर दी गई एवं उनके भाई राजा ज्ञानेन्द्र. ने गद्दी संभाली। राजा ज्ञानेंद्र को लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था स्वीकार नहीं था। नेपाल की जनता ने अप्रैल, 2006 में राजा ज्ञानेंद्र के खिलाफ भयंकर जनसंघर्ष एवं आंदोलन शुरू कर दिया। इसके लिए नेपाल में सात राजनीतिक दलों ने मिलकर एक गठबंधन बनाया। जिसे सप्तदलीय गठबंधन कहा जाता है। इस गठबंधन ने काठमांड में 4 दिनों के बंद की घोषणा की। अंततः राजा को 24 अप्रैल, 2006 को सप्तदलीय गठबंधन के प्रधान गिरजा प्रसाद कोइराला को प्रधानमंत्री बनाने की घोषणा करनी पड़ी।
Geography ( भूगोल ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1 | भारत : संसाधन एवं उपयोग |
2 | कृषि ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) |
3 | निर्माण उद्योग ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) |
4 | परिवहन, संचार एवं व्यापार |
5 | बिहार : कृषि एवं वन संसाधन |
6 | मानचित्र अध्ययन ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) |
History ( इतिहास ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1 | यूरोप में राष्ट्रवाद |
2 | समाजवाद एवं साम्यवाद |
3 | हिंद-चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन |
4 | भारत में राष्ट्रवाद |
5 | अर्थव्यवस्था और आजीविका |
6 | शहरीकरण एवं शहरी जीवन |
7 | व्यापार और भूमंडलीकरण |
8 | प्रेस-संस्कृति एवं राष्ट्रवाद |
Political Science दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1 | लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी |
2 | सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली |
3 | लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष |
4 | लोकतंत्र की उपलब्धियाँ |
5 | लोकतंत्र की चुनौतियाँ |
Economics ( अर्थशास्त्र ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1 | अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास |
2 | राज्य एवं राष्ट्र की आय |
3 | मुद्रा, बचत एवं साख |
4 | हमारी वित्तीय संस्थाएँ |
5 | रोजगार एवं सेवाएँ |
6 | वैश्वीकरण ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) |
7 | उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण |