2. प्रेम अयनि श्री राधिका – रसखान
Q 1. रसखान रचित सवैये का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर :- रसखान रचित सवैये में ब्रजभूमि के प्रति उनका हार्दिक प्रेम प्रकट होता है। सवैये में उन्होंने कहा है कि ब्रजभूमि की एक-एक वस्तु, स्थान, सरोवर, कँटीली झाड़ियाँ सुखदायक हैं क्योंकि यहाँ ब्रह्म के अवतार श्रीकृष्ण अवतरित हुए।
Q 2. रसखान ने माली-मलिन किन्हें और क्यों कहा है ?
उत्तर :- कवि ने माली-मालिन कृष्ण और राधा को कहा है। क्योंकि, कवि राधा-कृष्ण के प्रेममय युगल को प्रेम-भरे नेत्र से देखा है । यहाँ प्रेम को वाटिका मानते हैं और उस प्रेम-वाटिका के माली-मालिन कृष्ण-राधा को मानते हैं।
Q 3. रसखान के द्वितीय दोहे का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें ?
उत्तर :- प्रस्तुत दोहे में सवैया छन्द में भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग अत्यन्त मार्मिक है। सम्पूर्ण छन्द में ब्रजभाषा की सरलता, सहजता और मोहकता देखी जा सकती है। कहीं-कहीं तद्भव और तत्सम के सामासिक रूप भी मिल रहे हैं।
Q 4. कृष्ण को चोर क्यों कहा गया है ? कवि का अभिप्राय स्पष्ट करें ?
उत्तर :- कवि कृष्ण और राधा के प्रेम में मनमुग्ध हो गये हैं। उनकी मनमोहक छवि को देखकर मन पूर्णत: उस युगल में रम जाता है। इसलिए इन्हें लगता है कि इस देह से मनरूपी मणि को कृष्ण ने चुरा लिया है।
Q 5. ‘प्रेम-अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं’ कविता का सारांश लिखें।
उत्तर :- पाठयपुस्तक में ‘प्रेम-अयनि श्री राधिका’ शीर्षक के अंतर्गत चार दोहे संकलित हैं तथा ‘करील के कुंजन ऊपर वारौं’ शीर्षक कविता के अंतर्गत एक सवैया संकलित है। रसखान कवि कहते हैं कि श्री राधिका प्रेम की खान हैं और श्रीकृष्ण का सारा व्यक्तित्व प्रेम के रंग में सराबोर है। प्रेम रूपी वाटिका (प्रेमोद्यान) के ये दोनों मालिन-माली हैं। प्रेमिका राधा की आँखें जबसे श्रीकृष्ण की आँखों से मिली हैं, तब से वे कृष्ण मिलन के लिए बेचैन रहने लगी हैं। धनुष पर खींचे गए बाण के समान उनकी आँखें बड़ी कोशिश के बाद उनके वश में होती हैं, पर कृष्ण दर्शन की विवशता में उनकी आँखें स्थायी रूप से उनके वश में नहीं रह पातीं; वे धनुष से छूटे तीर की तरह श्रीकृष्ण की आकर्षक छवि की ओर बड़ी तेजी से चल पड़ती हैं। नंद किशोर श्रीकृष्ण ने राधा का मन रूपी माणिक्य चुरा लिया है। मन-माणिक्य के चोरी चले जाने से राधा फेर में पड़ गई हैं। ‘बेमन’ होने के कारण (मन के अभाव में) राधा का जीना मुश्किल हो गया है। जिस दिन से राधा (गोपिका) की आँखें प्रियतम कृष्ण से लगी है, उस दिन से ‘चितचोर’ कृष्ण को वह क्षण-भर के लिए भी अपनी आँखों से दूर करना नहीं चाहती। पाठयपुस्तक में संकलित रसखान के सवैये में कवि की श्रीकृष्ण और ब्रज के. प्रति अनन्य भक्ति अभिव्यक्त हुई है। कवि के लिए श्रीकृष्ण की छोटी लाठी (लकुटी) और कंबली (कमरिया) इतनी महत्त्वपूर्ण है कि तीनों लोकों का राज्य भी उनके सामने तुच्छ है। कवि कहता है कि मुझे यदि तीनों लोकों का राज्य भी प्राप्त हो जाए तो मैं कृष्ण की लाठी और कंबली की महत्ता के समक्ष उसे तुच्छ समझूँगा और उसका त्याग कर दूंगा। मुझे तो नंद की गाएँ चराते समय अपार सुख मिलता है। उसके आगे तो आठों सिद्धियों और नवों निधियों का सुख भी कुछ नहीं है। रसखान कवि के भीतर ब्रज के वन, बाग और तड़ाग को देखने की लालसा तीव्र हो उठी है। वे कहते हैं कि सोने-चाँदी के करोड़ों महल भी ब्रज के करील कुंजों की समता नहीं कर सकते। मुझे यदि कोई सोने-चाँदी के करोड़ों महल दे तब भी मैं उन्हें अस्वीकार कर दूंगा और ब्रज के करील-कुंजों के वैभव से प्राप्त आनंदानुभूति को अपने जीवन की महत्त्वपूर्ण पूँजी मानूँगा।
Q 6. सवैये में कवि की कैसी आकांक्षा प्रकट होती है ? भावार्थ बताते हुए स्पष्ट करें ?
उत्तर :- प्रेम-रसिक कवि रसखान द्वारा रचित सवैये में कवि की आकांक्षा प्रकट हुई है। इसके माध्यम से कवि कहते हैं कि कृष्णलीला की छवि के सामने अन्यान्य दृश्य बेकार हैं। कवि कृष्ण की लकुटी और कामरिया पर तीनों लोकों का राज न्योछावर कर देने की इच्छा प्रकट करते हैं। नन्द की गाय चराने की कृष्णलीला का स्मरण करते हुए कहते हैं कि उनके चराने में आठों सिद्धियों और नवों निधियों का सुख भुला जाना स्वाभाविक है । ब्रज के वनों के ऊपर करोड़ों इन्द्र के धाम को न्योछावर कर देने की आकांक्षा कवि प्रकट करते हैं।
Q 7. “मन पावन चितचोर, पलक ओट नहिं करि सकौं’ की व्याख्या करें।
उत्तर :- प्रस्तुत पंक्ति कृष्णभक्त कवि रसखान द्वारा रचित हिंदी पाठ्य-पुस्तक के ‘प्रेम-अयनि श्रीराधिका’ पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि ने कृष्ण की मनोहर छवि के प्रति अपने हृदय की रीझ को व्यक्त किया है।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहते हैं कि नन्दकिशोर में जिस दिन से चित्त लग गया है उन्हें छोड़कर कहीं नहीं भटकता । कृष्ण को अपना प्रीतम बताते हुए कहते हैं कि मन को पवित्र करने वाले चित्तचोर को आठों पहर देखते रहने की कामना समाप्त नहीं होती । कृष्ण मन को हरने वाले हैं। चित्त को चुराने वाले हैं। उनकी मोहनी मूरत अपलक देखते रहने की आकांक्षा कवि व्यक्त करते हैं।
Q 8. ‘रसखानि कबौं इन आँखिन सौं ब्रज के बनबाग तड़ाग निहारौं’ की व्याख्या करें।
उत्तर :- प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य की पाठ्य-पुस्तक के रसखान-रचित करोल के कुंजन ऊपर वारों’ पाठ से उद्धत है । प्रस्तुत पंक्ति में कवि ब्रज पर अपना जावन सर्वस्व न्योछावर कर देने की भावमयी विदग्धता मुखरित करते हैं।
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि ब्रज की बागीचा एवं तालाब अति सुशोभित एवं अनपम हैं। इन आँखों से उसकी शोभा देखते बनती है। कवि कहते हैं कि ब्रज के वनों के ऊपर. अति रमनीय, सुशोभित, मनोहारी मधुवन के ऊपर इन्द्रलोक को भी न्योछावर कर दूँ तो कम है। ब्रज के मनमो इक तालाब एवं बाग की शोभा देखते हुए कवि की आँखें नहीं थकती, इसकी शोभा निरंतर निहारते रहने की भावना को कवि ने इस पंक्ति के द्वारा बड़े ही सहजशैली में
अभिव्यक्त किया है।
class 10th hindi subjective question 2022
गोधूलि भाग 2 ( गद्यखंड ) SUBJECTIVE | |
1 | श्रम विभाजन और जाति प्रथा |
2 | विष के दाँत |
3 | भारत से हम क्या सीखें |
4 | नाखून क्यों बढ़ते हैं |
5 | नागरी लिपि |
6 | बहादुर |
7 | परंपरा का मूल्यांकन |
8 | जित-जित मैं निरखत हूँ |
9 | आवियों |
10 | मछली |
11 | नौबतखाने में इबादत |
12 | शिक्षा और संस्कृति |
गोधूलि भाग 2 ( काव्यखंड ) SUBJECTIVE | |
1 | राम बिनु बिरथे जगि जनमा |
2 | प्रेम-अयनि श्री राधिका |
3 | अति सूधो सनेह को मारग है |
4 | स्वदेशी |
5 | भारतमाता |
6 | जनतंत्र का जन्म |
7 | हिरोशिमा |
8 | एक वृक्ष की हत्या |
9 | हमारी नींद |
10 | अक्षर-ज्ञान |
11 | लौटकर आऊंगा फिर |
12 | मेरे बिना तुम प्रभु |