Class 10th Hindi Subjective

5. भारतमाता। -सुमित्रानंदन पंत


Q 1. भारतमाता कहाँ निवास करती है ?

उत्तर :- कविता के प्रथम अनुच्छेद में भारतमाता को ग्रामवासिनी मानते हुए तत्कालीन भारत का यथार्थ चित्रण किया गया है कि भारतमाता का फसलरूपी श्यामल शरीर है, धूल-धूसरित मैला-सा आँचल है। गंगा-यमुना के जल अश्रुस्वरूप हैं। ग्राम्य छवि को दर्शाती हुई भारत माँ की प्रतिमा उदासीन है।


Q 2. भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी क्यों बनी हुई है ?

उत्तर :-भारत को अंग्रेजों ने गुलामी की जंजीर में जकड़ रखा था। परतंत्रता की बेड़ी में जकड़ी, काल के कुचक्र में फंसी विवश, भारतमाता चुपचाप अपने पुत्रों पर किये गये अत्याचार को देख रही थी। इसलिए कवि ने परतंत्रता को दर्शाते हए मुखरित किया है कि भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी बनी है।


Q 3. भारतमाता शीर्षक कविता में पंत जी ने भारतीयों का कैसा चित्र खींचा है ?

उत्तर :- प्रस्तुत कविता में कवि ने दर्शाया है कि परतंत्र भारत की स्थिति दयनीय हो गई थी। परतंत्र भारतवासियों को नंगे वदन, भूखे रहना पड़ता था। यहाँ की तीस करोड़ जनता शोषित-पीड़ित, मूढ, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन एवं वृक्षों के नीचे निवास करने वाली थी।


Q 4. भारतमाता का हास भी राहग्रसित क्यों दिखाई पड़ता है ?

उत्तर :- भारतमाता के स्वरूप में ग्राम्य शोभा की झलक है। मुखमंडल पर चंद्रमा के समान दिव्य प्रकाशस्वरूप हँसी है, मुस्कुराहट है। लेकिन, परतंत्र होने के कारण वह हँसी फीकी पड़ गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि चन्द्रमा को राहु ने ग्रस लिया है।


Q 5. कवि की दुष्टि में आज भारतमाता का तप-संयम क्यों सफल है ?

उत्तर :- किन्तु भारतमाता ने गाँधी जैसे पूत को जन्म दिया और अहिंसा का स्तन्यपान अपने पुत्रों को कराई है । अतः विश्व को अंधकारमुक्त करनेवाली, संपूर्ण संसार को अभय का वरदान देनेवाली भारत माता का तप-संयम आज सफल है ।


Q 6. कवि भारतमाता को गीता-प्रकाशिनी मानकर भी ज्ञानमूढ़ क्यों कहता है ?

उत्तर :- परतंत्र भारत की ऐसी दुर्दशा हुई कि यहाँ के लोग खुद दिशाविहीन हो गये, दासता में बँधकर अपने अस्मिता को खो दिये । आत्म-निर्भरता समाप्त हो गई। इसलिए कवि कहता है कि भारतमाता गीता- प्रकाशिनी है, फिर भी आज ज्ञानमूढ़ बनी हुई है।


Q 7. ‘स्वदेशी’ कविता का मूल भाव क्या है? सारांश में लिखिए।

उत्तर :- स्वदेशी कविता का मूल भाव है कि भारत के लोगों से स्वदेशी भावना लुप्त हो गई है। विदेशी भाषा, रीति-रिवाज से इतना स्नेह हो गया है कि भारतीय लोगों का रुझान स्वदेशी के प्रति बिल्कुल नहीं है। सभी ओर मात्र अंग्रेजी का बोलबाला है।


Q 8. पंत रचित ‘भारतमाता’ कविता का सारांश लिखें।

उत्तर :- भारतमाता’ शीर्षक कविता पंत का श्रेष्ठ प्रगीत है। इसमें हर तत्कालीन भारत (परतंत्र भारत) का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है। यह प्रगीत भावात्मक कम विचारात्मक ज्यादा है।
कवि कहता है कि भारतमाता गाँवों में निवास करती है। ग्रामवासिनी भारतमाता का धूल से भरा हुआ, मैला-सा श्यामल आँचल खेतों में फैला हुआ है। गंगा-यमुना मानो ग्रामवासिनी भारतामाता की दो आँखें हैं जिनमें उसकी परतंत्रता जनित वेदना से निस्सृत (निकला हुआ) आँसू का जल भरा हुआ है। वह मिट्टी की प्रतिमा-सी उदास दिखाई पड़ती है। गरीबी ने उसे चेतनाहीन बना दिया है। वह झुकी हुई चितवन से न जाने किसे एकटक निहार रही है। उसके आधारों पर चिरकाल से नि:शब्द रोदन का दाग है। युग-युग के अंधकार से उसका मन विषादग्रस्त है। वह अपने ही घर में प्रवासिनी बनी हुई है।
पंत ने प्रस्तुत प्रतीत में भारतवासियों का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है। भारतवासियों के तन पर पर्याप्त वस्त्र नहीं है। वे अधनंगे हैं। उन्हें कभी भरपेट भोजन नहीं मिलता। वे शोषित और निहत्थे हैं। वे मूर्ख, असभ्य, अशिक्षित और निर्धन हैं। वे विवश और असहाय हैं। ग्लानि और क्षोभ से उनके मस्तक झुके हुए हैं। रोना
उनकी नियति बन चुका है। उनमें अपूर्व सहनशीलता है। भारत की सारी समृद्धि विदेशियों के पैरों पर पड़ी हुई है। भारतमाता धरती-सी सहिष्णु है। उसका मन कुंठित है। उसके अधर क्रंदन-कंपित हैं। शरविदुहासिनी भारतमाता का हास राहु ग्रसित हैं। अर्थात, अब उसके जीवन में हास के लिए कोई स्थान नहीं है। उसकी भृकुटि पर चिंता की रेखाएँ साफ देखी जा सकती है। वाष्पाच्छादित आकाश की तरह उसकी आँखें झुकी हुई हैं। उसका आनन कलंक से पूर्ण चंद्रमा से उपमित किया जा सकता है। गीता प्रकाशिनी भारतमाता ज्ञानमूढ़ है। आज उसका तप और संयम सफल हो गया है। उसने अहिंसा रूपी अमृत के समान अपना दूध पिलाकर भारत के लोगों के मन के भीतर के अंधकार और भय को दूर कर दिया है। भारतमाता जगज्जननी और जीवन को नई दिशा देनेवाली है।


Q 9. ‘चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित, नमित नयन नभ वाध्याच्छादित’ की व्याख्या करें।

उत्तर :- प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के ‘भारतमाता’ पाठ से उद्धत है जो सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित है। इसमें कवि ने भारत का मानवीकरण करते हुए पराधीनता से प्रभावित भारतमाता के उदासीन, दु:खी एवं चिंतित रूप को दर्शाया है।
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति में कवि ने चित्रित किया है कि गलामी में जकडी भारतमाता चिंतित है, उनकी भृकुटि से चिंता प्रकट हो रही है, क्षितिज पर गुलामीरूपी अंधकार की छाया पड़ रही है, माता की आँखें अश्रुपूर्ण हैं, और आँसू वाष्प बनकर आकाश को आच्छादित कर लिया है । इसके माध्यम से परतंत्रता की दु:खद स्थिति का दर्शन कराया गया है ।


Q 10. ‘स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लुंठित, धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित’ की व्याख्या करें।

उत्तर :- प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के सुमित्रानंदन पंत रचित ‘भारतमाता’ पाठ से उद्धत है। इसमें कवि ने परतंत्र भारत का साकार चित्रण किया है।
प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने कहा है कि भारत पर अंग्रेजी हुकूमत कायम हो गयी है। यहाँ के लोग अपने ही घर में अधिकारविहीन हो गये हैं। पराधीनता के चलते यहाँ की प्राकृतिक शोभा भी उदासीन प्रतीत हो रही है । ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ कवि की स्वर्णिम फसल पैरों तले रौंद दी गयी है और भारतमाता का मन सहनशील बनकर कुंठित हो रही है। इसमें कवि ने पराधीन भारत की कल्पना को मूर्तरूप दिया है।


class 10th hindi subjective question 2022

गोधूलि भाग 2 ( गद्यखंड ) SUBJECTIVE
 1श्रम विभाजन और जाति प्रथा
 2विष के दाँत
 3भारत से हम क्या सीखें
 4नाखून क्यों बढ़ते हैं
 5नागरी लिपि
 6 बहादुर
 7 परंपरा का मूल्यांकन
 8 जित-जित मैं निरखत हूँ
 9आवियों
 10 मछली
 11 नौबतखाने में इबादत
 12 शिक्षा और संस्कृति
गोधूलि भाग 2 ( काव्यखंड ) SUBJECTIVE
 1 राम बिनु बिरथे जगि जनमा
2 प्रेम-अयनि श्री राधिका
3अति सूधो सनेह को मारग है
4स्वदेशी
5भारतमाता
6जनतंत्र का जन्म
7हिरोशिमा
8एक वृक्ष की हत्या
9हमारी नींद
10अक्षर-ज्ञान
11लौटकर आऊंगा फिर
12मेरे बिना तुम प्रभु