3.अति सूथो सनेह को मारग है
Q 1. “मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं” से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :- कवि कहते हैं कि प्रेमी में देने की भावना होती है लेने की नहीं। प्रेम में प्रेमी अपने इष्ट को सर्वस्व न्योछावर करके अपने को धन्य मानते हैं। इसमें संपूर्ण समर्पण की भावना उजागर किया गया है।
Q 2. कवि कहाँ अपने आँसुओं को पहुंचाना चाहता है, और क्यों ?
उत्तर :- कवि अपनी प्रेयषी सजान के लिए विरह-वेदना को प्रकट करते हए बादल से अपने प्रेमाश्रुओं को पहुँचाने के लिए कहता है। वह अपने आँसुओं को सुजान के आँगन में पहुँचाना चाहता है, क्योंकि वह उसकी याद में व्यथित है और अपनी व्यथा के आँसुओं से प्रेयषी को भिंगो देना चाहता है।
Q 3. घनानंद के अनुसार पर-हित के लिए ही देह कौन धारण करता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- परहित के लिए ही देह, बादल धारण करता है। बादल जल की वर्षा करके सभी प्राणियों को जीवन देता है, प्राणियों में सुख-चैन स्थापित करता है। उसके विरह के आँसू, अमृत की वर्षा कर जीवनदाता हो जाता है।
Q 4. कवि प्रेममार्ग को ‘अति सूधो’ क्यों कहता है ? इस मार्ग की विशेषता क्या है ?
उत्तर :- कवि प्रेम की भावना को अमृत के समान पवित्र एवं मधुर बताते हैं । ये कहते हैं कि प्रेममार्ग पर चलना सरल है। इसपर चलने के लिए बहुत अधिक छल-कपट की आवश्यकता नहीं है।
Q 5. घनानन्द के द्वितीय छंद किसे संबोधित है, और क्यों ?
उत्तर :- द्वितीय छंद बादल को संबोधित है । इसमें मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना की अभिव्यक्ति है। मेघ का वर्णन इसलिए किया गया है कि मेघ विरह-वेदना में अश्रुधारा प्रवाहित करने का जीवंत उदाहरण है।
Q 6. ‘अति सूथो सनेह को मारग है, मो अँसवानिहि लै बरसौ कविता का सारांश लिखें।
उत्तर :- पाठयपुस्तक में उन्मुक्त प्रेम के स्वच्छंद मार्ग पर चलने वाले महान प्रेमी धनानंद (धन आनंद) के दो सवैये पाठयपुस्तक में संकलित है। प्रथमा. सवैया में प्रेम के सीधे, सरल और निश्छल मार्ग की बात कही गई है और दूसरे सवैया में मेघ की अन्योक्ति के द्वारा विरह-वेदना से भरे हृदय की तड़प को अत्यंत कलात्मक ढंग से अभिव्यक्त किया गया है।
धनानंद कहते हैं कि कौन कहता है कि प्रेम का मार्ग अत्यंत कठिन होता है। प्रेम का मार्ग तो अत्यंत सीधा, सरल और निश्छल होता है। यहाँ चतुराई के लिए कोई स्थान नहीं होता। हृदय से सीधे लोग ही प्रेम कर सकते हैं, सांसारिक और चतुर लोग नहीं । यहाँ तनिक भी चतुराई का टेढ़ापन नहीं चलता। यहाँ सच्चे हृदय का चलता है। जो अपने अहंकार का त्याग कर देता है, वही प्रेम कर सकता है। कपटी लोग प्रेम नहीं कर सकते। प्रेम शंकामुक्ति की अवस्था है। शंकालु हृदय प्रेम नहीं करा सकता। धन आनंद कहते हैं कि प्रेम में ऐकांतिकता होती है। ‘सुजान’ को उपालंभ देता हुआ कवि कहता है कि आपने कौन-सी विद्या पढ़ी है कि आसानी से चित्त का हरण कर लेते हैं, पर दर्शन देने में कोताही करते हैं। लेने के लिए तो बहुत कुछ (मन, एक माप) ले लेते हैं, पर देने के नाम पर कुछ भी नहीं (छटाँक, एक मान)!
दुसरे सवैया में मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से घनानंद ने अपनी विरह-वेदना की अभिव्यक्ति की है। कवि कहता है-हे मेघ, तुमने दूसरों के लिए ही देह धारण की है, अपना यथार्थ स्वरूप दिखलाओ, यानी अपनी वर्षा से मुझे तृप्त करो। अपनी सज्जनता का परिचय देते हुए अपने अमृतरूपी जल से मुझे परितृप्त करो, मुझे रससिक्त करो। हे जल देनेवाले और उसके माध्यम से जीवन प्रदान करनेवाले मेघ, मैं वेदना से तडप रहा हूँ, मेरे हृदय की वेदना को अपने शीतल स्पर्श से दूर करो। कभी तो उस ‘विश्वासी’ (व्यंग्य और उपालंभ से पूर्ण शब्द, सुजान के लिए प्रयुक्त शब्द) के आँगन में मेरे आँसुओं को (मुझसे लेकर) बरसाओ कि उन्हें मेरी याद आए और वे मेरी सुध ले सकें।
Q 7. कवि प्रेममार्ग को ‘अति सूधो’ क्यों कहता है ? इस मार्ग की विशेषता क्या है ?
उत्तर :- कवि प्रेम की भावना को अमृत के समान पवित्र एवं ‘मधुर बताते हैं। ये कहते हैं कि प्रेममार्ग पर चलना सरल है । इसपर चलने के लिए बहुत अधिक , छल-कपट की आवश्यकता नहीं है। प्रेमपथ पर अग्रसर होने के लिए अन्य सोच-विचार नहीं करना ,पड़ता और न ही किसी बुद्धि-बल की आवश्यकता होती है। इसमें भक्ति की भावना प्रधान होती है । प्रेम की भावना से आसानी से को प्राप्त किया जा सकता है । प्रेम में सर्वस्व देने की बात होती है लेने की लेशमात्र भी नहीं होता। यह मार्ग टेढ़ापन से मुक्त है। प्रेम में प्रेमी बेझियम नि:संकोच भाव से, सरलता से, सहजता से प्रेम करने वाले से एकाकार कर
लेता है।
Q 8. ‘यहाँ एक तैं दसरौ औंक नहीं की व्याख्या करें।
उत्तर :- प्रस्तुत पक्ति हिन्दी साहित्य की पाठय-पस्तक के कवि घनानंद द्वारा राचत आत सूधी सनेह को मारग है” पाठ से उद्धत है। इसके माध्यम से कवि प्रमा आर प्रयों का एकाकार करते हुए कहते हैं कि प्रेम में दो का पह अलग-अलग नहीं रहती, बल्कि दोनों मिलकर एक रूप में स्थित हो जाते हैं। प्रेमी निश्छल भाव से सर्वस्व समर्पण की भावना रखता है और तुलनात्मक अपक्षा नही करता है। मात्र देता है, बदले में कुछ लेने की आशा नहीं करता है।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान को संबोधित करत हक ह सुजान, सुनो ! यहाँ अर्थात् मेरे प्रेम में तुम्हारे सिवा कोई दसरा चिह्न नहीं है। मेरे हृदय में मात्र तुम्हारा ही चित्र अंकित है।
Q 9. ‘कछ मेरियौ पीर हि परसौ’ की व्याख्या करें।
उत्तर :- प्रस्तुत पक्ति हिन्दी साहित्य की पाठय-पस्तक से कवि घनानंद-रचित “मो अँसुवानिहिं लै बरसौ” पाठ से उद्धत है। प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि परोपकारी बादल से निवेदन किये हैं।
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति में कवि कहते हैं कि हे घन ! तुम जीवनदायक हो, परोपकारी हो, दूसरे के हित के लिए देह धारण करने वाले हो । सागर के जल को अमृत में परिवर्तित करके वर्षा के रूप में कल्याण करते हो। कभी मेरे लिए भी कुछ करो । मेरे लिए इतना जरूर करो कि मेरे हृदय को स्पर्श करो। मेरे दु:ख दर्द को समझो, जानो और मेरे ऊपर दया की दृष्टि रखते हुए अपने परोपकारी स्वभाववश मेरे हृदय की व्यथा को अपने माध्यम से सुजान तक पहुँचा दो। मेरे प्रेमाश्रुओं को लेकर सुजान के आँगन में प्रेम की वर्षा कर दो।
Q 10. सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
अति सनेह को ………………. बाँक नहीं,
तहाँ साँचे चलें…………… निसाँक नहीं।
उत्तर :- प्रस्तुत सवैया में रीतिकालीन काव्यधारा के प्रमुख कवि घनानंद-रचित ‘अति सधो को मारग है’, से उद्धृत है इसमें कवि प्रेम की पीड़ा एवं प्रेम की भावना के सरल और स्वाभाविक मार्ग का विवेचन करते हैं। कवि कहते हैं कि प्रेममार्ग अमृत के समान अति पवित्र है। इस प्रेमरूपी मार्ग में चतुराई और टेढ़ापन अर्थात् कपटशीलता का कोई स्थान नहीं है । इस प्रेमरूपी मार्ग में जो प्रेमी होते हैं वे अनायास ही सत्य के रास्ते पर चलते हैं तथा उनके अंदर के अहंकार समाप्त हो जाते हैं। यह प्रेमरूपी मार्ग इतना पवित्र है कि इसपर चलने वाले प्रेमी के हृदय में लेसमात्र भी झिझक, कपट और शंका नहीं रहती है।
class 10th hindi subjective question 2022
गोधूलि भाग 2 ( गद्यखंड ) SUBJECTIVE | |
1 | श्रम विभाजन और जाति प्रथा |
2 | विष के दाँत |
3 | भारत से हम क्या सीखें |
4 | नाखून क्यों बढ़ते हैं |
5 | नागरी लिपि |
6 | बहादुर |
7 | परंपरा का मूल्यांकन |
8 | जित-जित मैं निरखत हूँ |
9 | आवियों |
10 | मछली |
11 | नौबतखाने में इबादत |
12 | शिक्षा और संस्कृति |
गोधूलि भाग 2 ( काव्यखंड ) SUBJECTIVE | |
1 | राम बिनु बिरथे जगि जनमा |
2 | प्रेम-अयनि श्री राधिका |
3 | अति सूधो सनेह को मारग है |
4 | स्वदेशी |
5 | भारतमाता |
6 | जनतंत्र का जन्म |
7 | हिरोशिमा |
8 | एक वृक्ष की हत्या |
9 | हमारी नींद |
10 | अक्षर-ज्ञान |
11 | लौटकर आऊंगा फिर |
12 | मेरे बिना तुम प्रभु |