Class 10th Hindi Grammar ( हिंदी व्याकरण ) 12.संधि
प्रश्न 1. संधि किसे कहते हैं ?
उत्तर⇒ संधि शब्द का अर्थ है मेल। जब दो शब्द एक-दूसरे से मिलते हैं तो उनके मिलने के कारण ध्वनियों में जो परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते हैं।
प्रश्न 2. संधि के कितने भेद हैं ? प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर⇒संधि के तीन भेद होते हैं
1.स्वर संधि – जहाँ एक स्वर का दूसरे स्वर से मेल होने पर जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। जैसे-विद्या + अर्थी = विद्यार्थी, रवि + इंद्र = रवींद्र
आदि।
2. व्यंजन संधि – व्यंजन ध्वनि से परे स्वर या व्यंजन आने से व्यंजन में जो विकार (परिवर्तन) आता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं। जैसे–दिक् + अंबर = दिगंबर, सत् + जन = सज्जन आदि।
3.विसर्ग संधि – विसर्ग के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं। जैसे–नमः + ते = नमस्ते, मनः + बल = मनोबल
आदि।
प्रश्न 3. स्वर संधि के कितने भेद हैं ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर⇒जहाँ एक स्वर का दूसरे स्वर से मेल होने पर जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। जैसे-विद्या + अर्थी = विद्यार्थी, रवि + इंद्र = रवींद आदि।
स्वर संधि के चार भेद हैं-
1. दीर्घ संधि – ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ से परे क्रमशः ह्रस्व या दीर्घ अ / इ । उ./ आ जाएँ तो दोनों मिलकर क्रमशः दीर्घ आ, ई, ऊ हो जाते हैं।
जैसे-मत + अनुसार = मतानुसार; गिरि + ईश = गिरीश आदि।
2.गुण संधि – यदि ‘अ’ और ‘आ’ के आगे ‘इ’ या ‘ई’, ‘उ’ या ‘ऊ’, ‘ऋ’ या ‘ऋ’ आते हैं, तो दोनों के मिलने से क्रमशः ‘ए’, ‘ओ’ और ‘अर्’ हो जाते हैं। जैसे–महा + उत्सव = महोत्सव, नर + ईश = नरेश आदि।
3. वृद्धि संधि – ‘अ’ या ‘आ’ से परे ‘ए’ या ‘ऐ’ हों तो दोनों मिलकर ‘ऐ’ और ‘ओ’ या ‘औ’ हों तो दोनों मिलकर ‘औ’ हो जाते हैं।
जैसे-सदा + एव = सदैव, मत + ऐक्य = मतैक्य आदि।
4. यण संधि – यदि इ, ई, उ, ऊ और ऋ के बाद भिन्न स्वर आए तो इाई – का ‘य’, उ/ऊ का ‘व्’ और ऋ का ‘र’ हो जाता है।
जैसे-सु + आगत = स्वागत, अति + अधिक = अत्यधिक आदि।
ध्यान रखें कि संधि ध्वनियों के बीच होती है, शब्दों के बीच नहीं।
निम्नलिखित उदाहरणों को देखें और समझें :
1. | सत् + कर्म | (त् + क) = सत्कर्म |
2. | सत् + जन | (त् + ज) = सज्जन |
3. | गिरि + ईश | (इ + ई) = गिरीश |
4. | इति + आदि | (इ + आ) = इत्यादि |
5. | दु: + जन | (: + ज) = दुर्जन |
6. | मही + इंद्र | (ई + इ) = महींद्र |
7. | उत् + श्वास | (त् + श्) = उच्छवास |
8. | उत् + हरण | (त् + ह) = उद्धरण |
9. | देव + इंद्र | (अ + इ) = देवेन्द्र |
यहाँ पास-पास.आई ध्वनियों की निम्नलिखित स्थितियाँ दिखाई देती है –
स्थिति-1 : न तो पूर्वध्वनि में परिवर्तन है, न परध्वनि में। जैसे-सत् (त्) + (क) कर्म = सत्कर्म ।
किंतु, यहाँ दोनों घटक एक ही शिरोरेखा के नीचे हैं, ‘त्’ ‘त’ लिपि नियमों के अनुसार हुआ है।
स्थिति-2 : पूर्वध्वनि में परिवर्तन, किंतु परध्वनि में नहीं।
जैसे – सत् (त्) + (ज) जन = सज्जन
गिरि (इ) + (ई) ईश = गिरीश
इति (इ) + (आ) आदि = इत्यादि
दुः (:) + (ज) जन = दुर्जन
स्थिति-3 : पूर्वध्वनि में कोई परिवर्तन नहीं, किंत परध्वनि में परिवर्तन ।
जैसे- मही + (ई) + (इ) इंद्र = महींद्र
स्थिति-4 : जब पूर्वध्वनि और परध्वनि दोनों में परिवर्तन हो ।
जैसे – उत् (त्) + (श्) = उच् + श्वास = उच्छ्वास
उत् (त्) + (ह) = उद् + धरण = उद्धरण
संघि-विच्छेद
संघियुक्त समस्त पद या समस्त शब्द को फिर से संधि-पूर्व अवस्था में पहुँचाना संधि-विच्छेद कहा जाता है, जैसे –
हिमालय = हिम + आलय
जगन्नाथ = जगत् +नाथ
पुनर्जन्म = पुनः + जन्म
हिन्दी में संधि की स्थिति
ऊपर दिए गए सभी उदाहरण संस्कृत शब्दों के हैं, पर इसका यह तात्पर्य नहा है कि तद्भव शब्दों में सघि नहीं होती। हिन्दी की प्रवृत्ति संयोगात्मक नही वियोगात्मक है, फिर भी संधि की प्रक्रिया मिलती है। हिन्दी में संस्कृत के संधि नियमों का प्रभाव दिन-प्रतिदिन घटता जा रहा है। यही कारण है कि संधि-नियम के अनुसार प्रयुक्त न कर अलग-अलग शब्द के रूप में प्रयुक्त किया जाता है;
जैसे -‘राम + अभिलाषा’ को ‘रामाभिलाषा’ न कहकर ‘राम-अभिलाषा’ कहा जाता है।
‘देवी + इच्छा’ को ‘देवीच्छा’ न कहकर ‘देव-इच्छा’ ही कहा जाता है ।
हिन्दी के अपने संधि-नियम, जो विकसित हो गए हैं, इस प्रकार हैं :
[1] महाप्राणीकरण तथा अल्पप्राणीकरण
(क) महाप्राणीकरण : शब्द के अंत में अल्पप्राण ध्वनि के आगे यदि ‘ह’ ध्वनि हो तो अल्पप्राण ध्वनि महाप्राण हो जाती है। जैसे –
जब + ही = जभी
कब ही = कभी
तब + ही = तभी
अब + भी = अभी
(ख) अल्पप्राणीकरण : कभी-कभी पहले शब्द की अंतिम महाप्राण ध्वनि को अल्पप्राणीकरण कहा जाता है। जैसे – ताख पर-ताक पर
[2] लोप : कभी-कभी दो हिन्दी शब्दों की संधि में किसी एक ध्वनि (वर्ण) का लोप हो जाता है; जैसे –
वहाँ + ही | वहीं |
किस + ही | किसी |
यहाँ + ही | यहीं |
जिस + ही | जिसी |
वह + ही | वही |
नक + कटा | नकटा |
[3] आगम : कभी-कभी दो स्वरों के बीच में ‘य’ का आगम हो जाता है: जैसे-
कवि + ओं | कवियों |
नदी + ओं | नदियों |
रोटी + ओं | रोटियों |
लड़की + ओं | लड़कियों |
[4] वाहस्वीकरण : सामाजिक पदों में पूर्वपद का दीर्घ स्वर प्रायः ह्रस्व हो जाता जैसे
(क) मध्य स्वर का हस्वीकरण
आम + चूर | अमचूर |
हाथ + कंडा | हथकंडा |
हाथ + कड़ी | हथकड़ी |
कान + कटा | कनकटा |
(ख) अन्त्य स्वर का ह्रस्वीकरण
बहू + ए | बहुएँ |
लड़का + पन | लड़कपन |
डाकू + ओं | डाकुओं |
मीठा + बोला | मिठबोला |
[5] सादृश्यकरण : दो भिन्न ध्वनियाँ एकरूप हो जाती हैं; जैसे – पोत + दार = पोद्दार
[6] स्वर-परिवर्तन : विशेष रूप से सामासिक पदों में: जैसे –
पानी + घाट | पनघट इसी प्रकार ‘पनडुब्बी’ |
घोड़ा + दौड़ | घुड़दौड़ इसी प्रकार ‘घुड़सवार’ |
छोटा + पन | छुटपन इसी प्रकार ‘छुटभैया’ |
संस्कृत शब्दों में संधि – नियम
संस्कृत के शब्दों में तीन प्रकार के संधि-नियम हैं-
(1) स्वर संधि
(2) व्य संधि
(3) विसर्ग संधि
1. स्वर संधि
जहाँ एक स्वर का दूसरे स्वर से मेल होने पर जो परिवर्तन होता है, उसे ही संधि कहते हैं। इस संधि के मुख्यत चार भेद हैं :
(i) दीर्घ, (ii) गुण, (iii) वृद्धि, (iv) यण ।
(i) दीर्घ संधि
ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ से परे क्रमशः ह्रस्व या दीर्घ अ/ इ / उ / आ जाएँ तो दोनों मिलकर क्रमशः दीर्घ आ, ई, ऊ हो जाते हैं। जैसे-
मत + अनुसार = मतानुसार
(क)
अ + अ = आ | परम + अणु | परमाणु |
वेद + अंत | वेदांत | |
हिम + आलय | हिमालय | |
मत + अनुसार | मतानुसार | |
अ + आ = आ | भोजन + आलय | भोजनालय |
सिंह + आसन | सिंहासन | |
यथा + अर्थ | यथार्थ | |
आ + अ = आ | विद्या + अर्थी | विद्यार्थी |
दीक्षा + अंत | दीक्षांत | |
आ + आ = आ | महा + आत्मा | महात्मा |
विद्या + आलय | विद्यालय |
(ख)
इ + इ =ई | अभि + इष्ट | अभीष्टं |
रवि + इंद्र | रवींद्र | |
इ + ई = ई | गिरि + ईश | गिरीश |
ई + इ =ई | मही + इंद्र | महींद्र |
ई + ई =ई | रजनी+ ईश | रजनीश |
(ग)
उ + उ =ऊ | सु + उक्ति | सूक्ति |
उ + ऊ =ऊ | अंबु + ऊर्मि | अंबूर्मि |
ऊ + उ =ऊ | वधू + उत्सव | वधूत्सव |
ऊ + ऊ = ऊ | भू + ऊर्जा | भूर्जा |
टिप्पणी : ‘ऋ’ के दीर्घरूप ऋ युक्त शब्द हिन्दी में प्रयोग में नहीं आते है।
(ii) गुण संधि
यदि ‘अ’ और ‘आ’ के आगे ‘इ’ या ‘ई’ , ‘उ’ या ‘ऊ’ , ‘ऋ’ या ‘ऋ’ आने – हैं, तो दोनों के मिलने से क्रमशः ‘ए’, ‘ओ’ और “अर’ हो जाते हैं। जैसे –
(क)
अ + इ = ए | देव + इन्द्र | देवेन्द्र |
भारत + इंदु | भारतेंदु | |
सूर्य + उदय | सूर्योदय |
(ख)
अ + उ= आ | वीर + उचित | वीरोचित |
वार्षिक + उत्सव | वार्षिकोत्सव | |
अ + ई = ए | नर + ईश | नरेश |
गण + ईश | गणेश | |
आ + इ = ए | यथा + इष्ट | यथेष्ट |
महा + इन्द्र | महेन्द्र | |
आ+ ई = ए | रमा + ईश | रमेशन |
महा + ईश्वर | महेश्वर |
(ग)
अ+ ऋ | अर् राज + ऋषि सप्त ऋषि | राजर्षि सप्तर्षि |
आ + ऋ | अर महा +ऋषि | महर्षि |
अ + ऊ | ओ जल + ऊर्मि | जलोर्मि |
आ + उ = ओ | महा + उत्सव | महोत्सव |
गंगा + उत्सव | गंगोत्सव | |
आ + ऊ=ओ | गंगा + ऊर्मि | गंगोमि |
(iii) वृद्धि संधि
‘अ’ या ‘आ’ से परे ‘ए’ या ‘ऐ’ हों तो दोनों मिलकर ‘ऐ’ और ‘ओ’ या ‘आ’ और ‘ओ’ हो तो दोनों मिलकर ‘औ’ हो जाते हैं। जैसे-
(क)
अ + ए = ऐ | एक + एक | एकैक |
आ + ए = ऐ | सदा + एव | सदैव |
आ + ऐ = ऐ | महा + ऐश्वर्य | महैश्वर्य |
(ख)
अ + ओ = औ | वन + ओषधि | वनौषधि |
अ + औ = औ | परम + औदार्य | परमौदार्य |
आ + ओ = औ | महा + ओजस्वी | महौजस्वी |
आ + औ = औ | महा + औषध | महौषध |
(iv) यण संधि
यदि इ, ई, उ, ऊ और ऋ के बाद भिन्न स्वर आए तो इ/ई का ‘य’, उ/ऊ का ‘व’ और ऋ का ‘र’ हो जाता है। जैसे –
(क)
इ + अ = य | अति + अधिक | अत्यधिक |
अति + अंत | अत्यंत | |
इ + आ = या | इति + आदि | इत्यादि |
अति + आचार | अत्याचार | |
इ + उ = यु | उपरि + उक्त | उपर्युक्त |
इ + ऊ = यू | वि + ऊह | व्यूह |
इ + ए = ये | प्रति + एक | प्रत्येक |
(ख)
उ + अ | व सु + अच्छ | स्वच्छ |
उ + आ = वा | सु + आगत | स्वागत |
उ + ए = वे | अनु + एषण | अन्वेषण |
उ + इ = वि | अनु + इति | अन्विति |
(ग)
ऋ + अ = र | पितृ + अनुमति | पित्रनुमति |
ऋ + आ = रा | पितृ + आज्ञा | पित्राज्ञा |
टिप्पणी : नयन, नायक, पवन, नाविक, गायक, पावक, भावुक आदि शब्द हिन्दी में यौगिक व्युत्पन्न नहीं हैं, वरन् शब्द के रूप में व्यवहृत हैं।
2. व्यंजन संधि
व्यंजन ध्वनि से परे स्वर या व्यंजन आने से व्यंजन में जो विकार (परिवर्तन)आता है,उसे व्यंजन संधि कहते हैं। व्यंजन संधि के निम्नलिखित हैं –
(i)पहले (वर्गीय) वर्ण का तीसरे [वर्गीय] वर्ण में परिवर्तन :
‘क्’ का ‘ग्’ | दिक् + गज | दिग्गज |
दिक् + अंबर | दिगंबर | |
वाक् + ईश | वागीश | |
‘च्’ का ‘ज्’ | अच् + अंत | अंजंत |
षट् + आनन | षडानन | |
‘त्’ का ‘द्’ | सत् + गति | सद्गति |
सत् + वाणी | सद्वाणी | |
‘प्’ का ‘ब’ | अप् + धि | अब्धि |
(ii) पहले वर्गीय वर्ण के बाद ‘न’ या ‘म्’ हो तो उस अघोष/स्पर्श व्यंजन का पाँचवें वर्ण में परिवर्तन :
(अघोष स्पर्श) | (नासिक्य पंचम वर्ण) | |
‘क’ का ‘ण’ | वाक् + मय | वाङ्मय |
‘ट्’ का ‘ण’ | षट् + मास | षण्मास |
षट् + मुख | षण्मुख | |
‘त्’ का ‘न्’ | जगत् + नाथ | जगन्नाथ |
सत् + मार्ग | सन्मार्ग | |
चित् + मय | चिन्मय |
(iii) (क) “त्’ या ‘द्’ के बाद यदि “ल’ हो तो त्/द् ‘ल’ में बदल जाता है; जैसे –
‘त्’ का ‘ल्’ | उत् + लेख | उल्लेख |
उत् + लास | उल्लास | |
तत् + लीन | तल्लीन |
(ख) “त्’ या ‘द्’ के बाद यदि ज/झ हो तो त्/द् ‘ज’ में बदल जाता है; जैसे –
‘त् का ‘ज्’ | सत् + जन | सज्जन |
उत् + ज्वल | उज्ज्वल |
(ग) “त्’ या ‘द्’ के बाद यदि ‘श्’ हो तो त्/द् का ‘च’ और ‘श्’ का ‘छ्’ हो जाता है। जैसे –
‘त्’ + श = च्छ | उत् + श्वास | उच्छ्वास |
उत् + शिष्ट’ | उच्छिष्ट | |
सत् + शास्त्र | सच्छास्त्र |
(घ) “त’ या ‘द्’ के बाद यदि ‘ह’ हो तो त्/द् के स्थान पर ‘द’ और . ‘ह’ के स्थान पर ‘ध’ हो जाता है। जैसे –
त् + ह = द्ध | तत् + हित | तद्धित |
उत् + हार | उद्धार | |
उत् + हरण | उद्धरण |
(ङ) ‘त्’ या ‘द्’ के बाद यदि च/छ हो तो त्/द् का ‘च’ हो जाता है। जैसे –
त् + च = च्च | उत् + चारण | उच्चारण |
सत् + चरित्र | सच्चरित्र |
(iv) जब पहले पद के अंत में स्वर (लिखित रूप में) हो और आगे के पद का पहला वर्ण ‘छ’ हो तो ‘छ’ के स्थान पर ‘च्छ’ हो जाता है। जैसे –
अ + छ = अच्छ | स्व + छंद | स्वच्छद |
आ + छा =आच्छा | आ + छादन | आच्छादन |
इ + छ = इच्छ | संधि + छेद | संधिच्छेद |
उ + छे | उच्छे अनु + छेद | अनुच्छेद |
(v) ‘म्’ संबंधी नियम –
जब पहले पद के अंतिम वर्ण ‘म्’ के आगे दूसरे पद का प्रथम वर्ण अंत:स्थ’ (य, र, ल, व) या उष्म (श, ष, स, ह) या अन्य स्पर्श व्यंजन हो तो ‘म’ के स्थान पर पंचम वर्ण अथवा अनुस्वार हो जाता है। जैसे-
सम् + गम | संगम |
सम् + हार | संहार |
अहम् + कार | अहंकार |
सम् + चय | संचय |
सम् + वाद | संवाद |
सम् + तोष | संतोष |
सम् + लाप | संलाप |
सम् + बंध | संबंध |
सम् + रक्षण | संरक्षण |
सम् + योग | संयोग |
(vi) ‘न्’ का ‘गण’ होना
ऋ, र, प, से परे ‘न’ का ‘ण’ हो जाता है। चंवर्ग, तवर्ग, ‘श’ और ‘स’ के व्यवधान से ‘ण’ नहीं होता है। जैसे –
परि + नाम | परिणाम |
प्र + मान | प्रमाण |
राम + अयन | रामायण |
दुर्जन, पर्यटन, रसना, अर्जुन, अर्चना, दर्शन, ‘पतन में ‘ण’ नहीं होता है।
(vii) ‘स्’ का ‘ष’ होना
अभि + सेक | अभिषेक |
सु + सुप्ति | सुषुप्ति |
वि + सम | विषम |
टिप्पणी : विसर्ग और अनुस्वार इसके अपवाद हैं।
3. विसर्ग संधि
विसर्ग के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं। इसके प्रमुख नियम इस प्रकार हैं –
(i) विसर्ग का ‘ओ’ होना
विसर्ग से पूर्व यदि ‘अ’ और बाद में ‘अ’ अथवा तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य/र/ल/व हो तो ‘ओ’ हो जाता है; जैसे-
मनः + अनुकूल | मनोनुकूल |
मनः + रथ | मनोरथ |
अधः + गति | अधोगति |
पयः + धर | पयोधर |
मनः + बल | मनोबल |
तपः + बल | तपोबल |
वयः + वृद्ध | वयोवृद्ध |
(ii) विसर्ग का ‘र’ होना
विसर्ग से पूर्व अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और परे कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण या य, ल, व, हं में से कोई हो तो विसर्ग का र/र् हो जाता है; जैसे –
निः + आहार | निराहार |
निः + आकार | निराकार |
निः + धनः | निर्धन |
दुः + आशा | दुराशा |
दुः + जन | दुर्जन |
दुः + बल | दुर्बल |
आशीः + वाद | आशीर्वाद |
निः + जन | निर्जन |
(iii) विसर्ग का ‘श्’ होना
विसर्ग से पूर्व कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का ‘श’ हो जाता है; जैसे –
निः + चल | निश्चल |
निः + चिंत | निश्चिंतं |
दु: + शासन | दुश्शासन |
दुः + चरित्र | दुश्चरित्र |
(iv) विसर्ग का ‘स’ होना
यदि विसर्ग के बाद ‘त’ या ‘स’ हो तो विसर्ग का ‘स’ हो जाता है; जैसे –
नमः + ते | नमस्ते |
दु: + साहस | दुस्सास |
निः + संतान | निस्संतान |
निः + तेज | निस्तेज |
(v) विसर्ग का ‘ष्’ होना
यदि विसर्ग के पूर्व इ/उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ‘ष’ हो जाता है। जैसे –
निः + कलंक | निष्कलंक |
निः + फल | निष्फल |
चतुः + पाद | चतुष्पाद |
निः + काम | निष्काम |
(vi) विसर्ग का लोप होना
विसर्ग से पूर्व अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है; जैसे –
अत: + एव | अतएव |
(vii) विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो विसर्ग लुप्त हो जाता है और स्वर दीर्घ हो जाता है; जैसे –
निः + रोग | नीरोग |
निः + रस | नीरस |
स्मरणीय : प्रमुख शब्दों की संधि-तालिका |
[अ, आ ]
अलंकार | अलम् + कार |
अंतः पुर | अंतः + पुर |
अत्यधिक | अति + अधिक |
अधीश्वर | अधि + ईश्वर |
अन्योन्याश्रय | अन्य + अन्यआश्रय |
अभीष्ट | अभि + इष्ट |
अत्याचार | अति + आचार |
अन्यान्य | अन्य + अन्य |
अतएव | अतः + एव |
अधोगति | अधः + गति |
अहर्निश | अहः + निश |
अत्यंत | अति + अंत |
अन्वेषण | अनु + एषण |
अब्ज | अप + ज |
अजंत | अच् + अंत |
अम्मय | अप् + मय |
अन्नाभाव | अन्न + अभाव |
अम्बूर्मि | अम्बु + ऊर्मि |
अत्युत्तम | अति + उत्तम |
अत्यावश्यक | अति +आवश्यक |
अत्यल्प | अति + अल्प |
अत्याधुनिक | अति + आधुनिक |
अहंकार | अहम् + कार |
अन्वित | अनु + इत |
आशीर्वाद | आशीः + वाद |
आकृष्ट | आकृष् + त |
आशीर्वचन | आशी: + वचन |
अभ्युदय | आभ + उदय |
[इ, ई, उ, ए]
इत्यादि | इति + आदि |
उन्माद | उत् + माद् |
उच्छृखल | उत् + शृंखल |
उद्भव | उत् + भव |
उद्धत | उत् + हत |
उल्लंघन | उत् + लंघन |
उद्गम | उत् + गम |
उपेक्षा | उप + ईक्षा |
उद्घाटन | उत् + घाटन |
उद्दाम | उत् + दाम |
उच्चारण | उत् + चारण |
उच्छिन्न | उत् + छिन्न |
उच्छ्वास | उत् + श्वास |
उल्लास | उत् + लास |
उद्धार | उत् + हार |
उन्नायक | उत् + नायक |
उन्मीलित | उत + मीलित |
उदय | उत् + अय |
उन्मत्त | उत् + मत्त |
उज्ज्वल | उत् + ज्वल |
उद्योग – | उत + योग |
उन्नयन | उत् + नयन |
उल्लेख | उत् + लेख |
एकैक | एक + एक |
उपर्युक्त | उपरि + उक्त |
उन्नति | उत् + नति |
[ क ]
कल्पांत | कल्प + अंत |
कमलेश | कमला + ईश |
किन्नर | किम् + नर |
कृदंत | कृत् + अंत |
[ त ]
तथैव | तथा + एव |
तल्लीन | तत् + लीन |
तद्धित | तत् + हित |
तेजोपुंज | तेजः + पुंज |
तदाकार | तत् + आकार |
तथापि | तथा + अपि |
तपोवन | तपः + वन |
तेजोराशि | तेजः + राशि |
तृष्णा | तृष् + ना |
तिरस्कार | तिरः + कार |
[ द ]
देवेंद्र | देव +इन्द्र |
दुश्शासन | दुः + शासन |
दिग्भ्रम | दिक् + भ्रम |
दिग्गज | दिक् + गज |
दिगंबर | दिक् + अंबर |
दावानल | दाव + अनल |
दुर्धर्ष | दुः + धर्ष |
दुर्दिन | दु: + दिन |
दुर्ग | दु: + ग |
दुस्तर | दु: + तर |
दुर्वह | दुः + वह |
देवर्षि | देव + ऋषि |
दुर्जन | दुः + जन |
दुष्कर | दु: + कर |
[ न ]
नमस्कार | नमः + कार |
नदीश | नदी + ईश |
नारीश्वर | नारी + ईश्वर |
नयन | ने + अन |
नाविक | नौ + इक |
निस्संदेह | निः + संदेह |
निराधार | निः + आधार |
निस्सार | निः + सार |
निरीह | निः + ईह |
निस्सहाय | निः + सहाय |
निरर्थक | निः + अर्थक |
निर्विवाद | निः + विवाद |
निश्चिंत | निः + चिंत |
निरंतर | निः + अंतर |
निर्झर | निः + झर |
निश्चय | निः + चय |
निष्प्राण | निः + प्राण |
निर्मल | निः + मल |
निर्भर | निः + भर |
निष्कपट | निः + कपट |
निर्गुण | निः + गुण |
निर्विकार | निः + विकार |
निष्फल | निः + फल |
निरुपाय | निः + उपाय |
निर्जल | निः + जल |
नायक | नै + अक |
नीरोग | निः + रोग |
[ प ]
परमेश्वर | परम + ईश्वर |
परमौषध | परम + औषध |
परमार्थ | परम + अर्थ |
पावक | पौ + अक |
पित्रादेश | पितृ + आदेश |
पंचम | पम् + चम |
पुरुषोत्तम | पुरुष + उत्तम |
प्रत्येक | प्रति + एक |
प्रत्युपकार | प्रति + उपकार |
पुस्तकालय | पुस्तक + आलय पवन |
पवित्र | पो + इत्र पुनर्जन्म |
जन्म पुरस्कार | पुरः + कार |
प्रत्यय | प्रति + अय |
परिच्छेद | परि + छेद |
परीक्षा | परि + ईक्षा |
प्रत्यक्ष | प्रति + अक्ष |
प्रांगण | प्र + अंगण |
पुनरुक्ति | पुनः + उक्ति |
पीतांबर | पीत + अंबर |
पदोन्नति | पद + उन्नति |
पृष्ठ | पृष् + थ |
प्रतिच्छाया | प्रति + छाया |
प्रोत्साहन | प्र + उत्साहन |
पय:पान | पयः + पान |
पयोधि | पयः + धि |
परिष्कार | परिः + कार |
प्रात:काल | प्रातः + काल |
प्रथमोऽध्यायः | प्रथमः + अध्यायः |
पयोद | पयः + द |
[ भ ]
भवन | भो + अन |
भाग्योदय | भाग्य + उदय |
भावुक | भौ + उक |
भोजनालय | भोजन + आलय |
[ म ]
मुनींद्र | मुनि + इंद्र |
महींद्र | मही + इंद्र |
महोर्मि | महा + ऊर्मि |
मृण्मय | मतृ + मय |
मातृण | मातृ + ऋण |
मतैक्य | मत + ऐक्य |
महौषध | महा+ औषध |
मनोहर | मनः + हर |
मनोग्रत | मनः + गत |
महाशय | महा + आशय |
मन्वन्तर | मनु + अंतर |
महोत्सव | महा+ उत्सव |
मृगेंद्र | मृग + इंद्र |
महर्षि | महा + ऋषि |
मनोयोग | मनः + योग |
मनोरथ | मनः + रथ |
मनोभाव | मनः + भाव |
मनोविकार | मनः + विकार |
मनोनुकूल | मनः + अनुकूल |
मनोरम | मनः + रम |
[ य ]
यद्यपि | यदि + अपि |
यथोचित | यथा + उचित |
यशोदा | यशः + दा |
यशोधरा | यशः + धरा |
युधिष्ठिर | युधि + स्थिर |
यशोधन | यशः + धन |
[ र, ल, व ]
रत्नाकर | रत्न + आकर |
रामायण | राम + अयन |
राजर्षि | राज + ऋषि |
राजेन्द्र | राज + इन्द्र |
लोकोक्ति | लोक + उक्ति |
व्यायाम | वि + आयाम |
व्याप्त | वि + आप्त |
वाङ्मय | वाक् + मंय |
व्युत्पत्ति | वि + उत्पत्ति |
विद्यार्थी | विद्या + अर्थी |
वागीश | वाक् + ईश |
व्यर्थ | वि + अर्थ |
व्याकुल | वि + आकुल |
वयोवृद्ध | वयः + वृद्ध |
वसुधैव | वसुधा + एव |
विद्यालय | विद्या + आलय |
[श, ष, स ]
शिरोमणि | शिरः + मणि |
शंकर | शम् + कर |
शशांक | शश + अंक |
शुद्धोदन | शुद्ध + ओदन |
शिवालय | शिव + आलय |
शस्त्रास्त्र | शस्त्र + अस्त्र |
श्रेयस्कर | श्रेय: + कर |
षड्दर्शन | षट् + दर्शन |
सुरेंद्र | सुर + इंद्र |
स्वागत | सु + आगत |
स्वार्थ | स्व + अर्थ |
सदानंद | सत् + आनंद |
सद्गुरु | सत् + गुरु |
सद्भावना | सत् + भावना |
सद्धर्म | सत् + धर्म |
सज्जन | सत् + जन |
संतोष | सम् + तोष |
संकल्प | सम् + कल्प |
संयोग | सम् + योग |
संसार | सम् + सार |
संयम | सम् + यम |
सदाचार | सत् + आचार |
सीमांत | सीमा + अंत |
सप्तर्षि | सप्त + ऋषि |
स्वाधीन | स्व + अधीन |
साश्चर्य | स + आश्चर्य |
सत्याग्रह | सत्य + आग्रह |
सावधान | स + अवधान |
सर्वोदय | सर्व + उदय |
सूर्योदय | सूर्य + उदय |
सरावर | सरः + वर |
सदवाणी | सत + वाणी |
सूर्योदयः | सूर्य + उदय |
स्वर्ग | स्वः + ग |
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तर
1. ‘सूक्ति’ का सन्धि-विच्छेद क्या है ?
(A) स + उक्ति
(B) सू + उक्ति
(C) सु + उक्ति
(D) सू + ऊक्ति
उत्तर⇒(C) सु + उक्ति
2. ‘प्रत्येक’ का संधि-विच्छेद है
(A) प्र + ति + एक
(B) प्रत्य + एक
(C) प्रः + एक
(D) प्रति + एक
उत्तर⇒(D) प्रति + एक
3. संधि का अर्थ होता है
(A) मेल
(B) विग्रह
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर⇒(A) मेल
4. व्यंजन ध्वनि से परे स्वर या व्यंजन आने से व्यंजन में जो विकार (परिवर्तन) आता है, उसे कहते हैं
(A) स्वर संधि
(B) व्यंजन संधि
(C) विसर्ग संधि
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर⇒(A) स्वर संधि
5. संधि के कितने भेद हैं
(A) दो
(B) चार
(C) तीन
(D) पाँच
उत्तर⇒(C) तीन
6’जहाँ एक स्वर का दूसरे स्वर से मेल होने पर परिवर्तन होता है, उसे कहते हैं
(A) स्वर संधि
(B) व्यंजन संधि
(C) विसर्ग संधि
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर⇒(A) स्वर संधि
7. जब दो शब्द एक-दूसरे से मिलते हैं, तो उनके मिलने के कारण ध्वनियों में जो परिवर्तन होता है, उसे कहते हैं
(A) संधि
(B) समास
(C) अव्यय
(D) प्रत्यय
उत्तर⇒(A) संधि
8. विसर्ग के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार होता है उसे कहते हैं
(A) स्वर संधि
(B) व्यंजन संधि
(C) विसर्ग संधि
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर⇒(C) विसर्ग संधि
9. ‘अ’ या ‘आ’ से परे ‘ए’ या ‘ऐ’ हो, तो दोनों मिलकर ‘ऐ’ और ‘ओ’ या ‘औ’ हो तो दोनों मिलकर ‘औ’ हो जाते हैं, उसे कहते हैं
(A) दीर्घ संधि
(B) गुण संधि
(C) वृद्धि संधि
(D) यण संधि
उत्तर⇒(C) वृद्धि संधि
10. ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ से परे क्रमशः ह्रस्व या दीर्घ अ / इ / उ आ. जाएँ, तो दोनों मिलकर क्रमशः आ, ई, ऊ हो जाते हैं, उसे कहते है
(A) दीर्घ संधि
(B) गुण संधि
(C) वृद्धि संधि
(D) यण् संधि
उत्तर⇒(A) दीर्घ संधि
11. यदि ‘अ’ और ‘आ’ के आगे ‘इ’ या ‘ई’, ‘उ’ या ‘ऊ’, ‘ऋ’ या ‘ऋ’ आते हैं, तो दोनों के मिलने से क्रमश: ‘ए’, ‘ओ’ और ‘अर्’ हो जाते हैं उसे कहते हैं
(A) दीर्घ संधि
(B) गुण संधि
(C) वृद्धि संधि
(D) यण् संधि
उत्तर⇒(B) गुण संधि
12: स्वर संधि के कितने भेद होते हैं ?
(A) दो
(B) चार
(C) तीन
(D) पाँच
उत्तर⇒(B) चार
13. ‘अनधिकार’ का कौन-सा संधि-विच्छेद सही है ?
(A) अनः + धिकार
(B) अन् + अधिकार
(C) अन + अधिकार
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर⇒(B) अन् + अधिकार
14. यदि. इ, ई, उ, ऊ और ऋ के बाद भिन्न स्वर आए तो इ/ई का ‘य’, उ/ऊ का ‘व’ और ऋ का ‘र’ हो जाता है, उसे कहते हैं-
(A) दीर्घ संधि
(B) गुण संधि
(C) वृद्धि संधि
(D) यण संधि
उत्तर⇒(D) यण संधि
15. निम्नांकित में व्यंजन संधि का उदाहरण कौन-सा है ?
(A) योगेश्वर
(B) निर्मल
(C) तद्धित
(D) परोपकार
उत्तर⇒(C) तद्धित
16. स्वर संधि’का उदाहरण कौन-सा है ?
(A) तल्लीन
(B) तदाकार
(C) नायक
(D) निश्शंक
उत्तर⇒(C) नायक
17. निम्नांकित में विसर्ग संधि का उदाहरण कौन-सा है ?
(A) निस्सहाय
(B) जगन्नाथ
(C) सतीश
(D) प्रत्येक
उत्तर⇒(A) निस्सहाय
18. ‘उच्चारण’ का संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) उत् + चारण
(B) उत् + रण
(C) उ + चारण
(D) उ + रण
उत्तर⇒(A) उत् + चारण
19. ‘गिरीश’ का. संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) गिरी + ईश
(B) गिरि + ईश
(C) गिरिः + इश
(D) गिर + ईश
उत्तर⇒(B) गिरि + ईश
20. ‘जगन्नाथ’ का संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) जग + नाथ
(B) जगः + नाथ
(C) जगत + नाथ
(D) जगत् + नाथ
उत्तर⇒(D) जगत् + नाथ
21 तिरस्कार का संधि-विच्छेद. क्या है ?
(A) तिर + कार
(B) तिरी + कार
(C) तिरः + कार
(D) तीरी + कार
उत्तर⇒(C) तिरः + कार
22. ‘नीरव’ का संधि-विच्छेद, क्या है ?
(A) नी: + रव
(B) निः + रव
(C) नी + रख
(D) नि + रव
उत्तर⇒(B) निः + रव
23. ‘निष्फल’ का संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) नी: + फल
(B) निः + फल
(C) नी + फल
(D) नि + फल
उत्तर⇒(B) निः + फल
24: “सतीश’ का संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) सती + ईश
(B) सती + इश
(C) सति + ईश
(D) सती: + ईश
उत्तर⇒(A) सती + ईश
25. “प्रत्येक’ का संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) प्रती + एक
(B) प्रती + एक
(C) प्रति + एक
(D) प्रतिः + एक
उत्तर⇒(C) प्रति + एक
26. “परिणाम’ का संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) परि + णाम
(B) परी + णाम
(C) परिः + णाम
(D) परि + नाम
उत्तर⇒(C) परिः + णाम
27. ‘विद्यार्थी’ का संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) विद्याः + अर्थी
(B) विद्या + अर्थि
(C) विद्या + अर्थी
(D) वीद्या + अर्थी
उत्तर⇒(C) विद्या + अर्थी
28. ‘यशोदा’ का संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) यश + दा
(B) यशो + दा
(C) यशोः + दा
(D) यशः + दा
उत्तर⇒(D) यशः + दा
29. ‘स्वागत’ का संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) सु + आगत
(B) सू + आगत
(C) सो + आगत
(D) सो + अगत
उत्तर⇒(A) सु + आगत
30. ‘सच्चरित्र’ का संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) सच्च + रित्र
(B) स + चरित्र
(C) सत् + चरित्र
(D) सच + चरित्र
उत्तर⇒(C) सत् + चरित्र
31. “विसर्ग’ संधि का उदाहरण कौन-सा है ?
(A) उज्ज्वल
(B) रेखांकित
(C) तथैव
(D) दुष्कर्म
उत्तर⇒(D) दुष्कर्म
32. ‘स्वर’ संधि का उदाहरण कौन-सा है ?
(A) उन्नति
(B) अत्यधिक
(C) दिगंबर
(D) निर्मल
उत्तर⇒(B) अत्यधिक
33. ‘व्यंजन’ संधि का उदाहरण है
(A) निस्सहाय
(B) मनोज
(C) उच्चारण
(D) व्यर्थ
उत्तर⇒(C) उच्चारण
34. “ए’ और ‘अ’ वर्गों के मेल से किस नई ध्वनि का विकास होता है ?
(A) अय
(B) आय्
(C) अव्
(D) आव्
उत्तर⇒(A) अय
35. ‘निर्मल’ का संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) निः + मल
(B) नीः + मल
(C) निर + मल
(D) नि + मल
उत्तर⇒(A) निः + मल
36. ‘व्याकुल’ का संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) वी + आकुल
(B) वि + आकुल
(C) विः + आकुल
(D) वि + अकुल
उत्तर⇒(B) वि + आकुल
37. ‘संस्मरण’ का संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) सम् + श्मरण
(B) सम + स्मरण
(C) सम् + स्मरण
(D) सम् + स्मारण
उत्तर⇒(C) सम् + स्मरण
38. ‘स्वेच्छा’ का संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) सव + ईच्छा
(B) स्व + ईच्छा
(C) स्वः + इच्छा
(D) स्व + इच्छा
उत्तर⇒(D) स्व + इच्छा
39. स्वर सन्धि का उदाहरण कौन-सा है ?
(A) उन्नति
(B) अत्यधिक
(C) दिगम्बर
(D) निर्मल
उत्तर⇒(B) अत्यधिक
40. ‘मनोरथ’ का सही सन्धि-विच्छेद क्या है ?
(A) मनो + रथ :
(B) मनोः + थ
(C) मनः + रथ
(D) मन + ओरथ
उत्तर⇒(C) मनः + रथ
41. ‘देवेश’ का सही सन्धि-विच्छेद क्या है ?
(A) देव + ईश
(B) देव + इश
(C) देवा + इश
(D) देव + वेश
उत्तर⇒(A) देव + ईश
42. ‘संचय’ का सही सन्धि-विच्छेद क्या है ?
(A) सन् + चय
(B) स + चय
(C) सम् + चय
(D) सङ् + चय
उत्तर⇒(C) सम् + चय
43. ‘नयन’ का सन्धि-विच्छेद क्या है ?
(A) ने + अयन
(B) ने + ईन
(C) ने + अन
(D) ने + यन
उत्तर⇒(C) ने + अन
44.’अन्वय’ संधिपद का सही संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) अन् + अय
(B) अनु + अय
(C) अन + वय
(D) अनु + वय
उत्तर⇒(B) अनु + अय
45. ‘सरेन्द्र’ में किन वर्गों की संधि हुई है ?
(A) अ + अ
(B) अ + इ
(C) अ + उ
(D) आ + ए
उत्तर⇒(B) अ + इ
46. ‘सूर्योदय’ का सही संधि-विच्छेद है
(A) सूर्यो + दय
(B) सूर्य + उदय
(C) सूर्यः + उदय
(D) सूर्य + ऊदय
उत्तर⇒(B) सूर्य + उदय
Class 10th Hindi Grammer Question Answer